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________________ १३६ ] सिरिचंदधिरइयउ [ ११. २१. १०इय अग्यो वि विइन्नु तिवारउ तो वि न कि पि जाउ साहारउ । १० जालासय मेल्लंतु भयावहु पवणाइछुद्धाइउ हुयवहु । घत्ता-वेढिउ घरु भग्गउ निग्गमणु पुणु भणिउ ताइँ पिउ भीयमणु । सहसत्ति म कि पि खेउ करहि लइ अवरु वि काइँ देउ सरहि ॥२१॥ जो अम्हइँ मरणहो उव्वारइ मयणुव' जलणु जलंतु निवारइ । ता परिवाडिग्र हरि कमलासण इंद चंद अहमिद हुयासण । धरण वरुण गह गउरि गणेसर भगवइ जक्ख रक्ख दिवसेसर। अवर वि सुर सुमरेवि रवण्णउ आयरेण अग्धंजलि दिण्णउ । पर मरुसुहि केण वि न निवारिउ घवसित्तु व पज्जलइ निरारिउ। ५ एत्यंतरे विलक्खु असरणमणु भासइ नायदत्तु वणिनंदणु । जिणमइ जिणवरसासणवच्छले न वि एत्तियहँ मज्झि एक्कु वि हले। अत्थि देउ जलणेण जलंत. जो अम्हइँ रक्खेइ मरंत'। सो कि पह जो देइ न रक्खइ पावयम्मु पिसुणु व उप्पेक्खइ । संपइ तुहुँ दे अग्घु जिणिदहो जेण विमुच्चहुँ पाणविमदहो। घत्ता-सइँ लेप्पिणु ताणंतरि बरहो सुयसासुयसुण्हहँ देवरहो । दोजण [-ह] दुविह सन्नासु तए भासिउ विच्चासियजिणमयए ॥२२।। २३ जइ अरहंतु महंतु महापहु सिद्ध बुद्ध संकरु भवभयमहु । जइ देवाहिदेउ अजरामरु परमप्पउ पयपणयनरामरु । वीयराउ परपरमु परावरु जइ तवनिलउ तिलोयरमावरु । इह परलोयसरणु अमिप्रोवमु तेण पउत्तु अईव अणोवमु । धम्मु महंतसोक्खसयदावणु अत्थि अहिंसालक्खणु पावणु। ५ जइ निव्वाणदिक्ख सुहयारी ता सुपवित्त भवासुहहारी। तो महुँ इह सपुत्तभत्तारिहे रक्ख हवेउ निरुत्तउ मारिहे। एम भणेवि अहोहविग्रोएँ' अग्घु देवि थिय पडिमाजोएँ । ता तहो तक्खणेण सियसेविण संति पयासिय सासणदेविट। सहसा सिहि जलंतु उल्हाविउ किउ सुहि जणु भिल्लोहु पलाविउ । १० २२. १ महुव । २३. १ अहोहुविओएँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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