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१३४ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ११. १७. ५-- हलि मेल्लेवि जयत्तयसेवहाँ
निरु निरवज्ज दिक्ख हरएवहो । ५ अन्न न दुग्गइगमणनिवारी
अन्न न मोक्खपरंपरकारी । वज्जेप्पिणु गुरुदोहु न केहिँ वि। हम्मइ अकरणेहिँ गरुएहिँ वि । उक्तं च भवविच्छेदिनी दीक्षा निरवद्या सुनिर्मला ।
नृपशूनां हितार्थाय महादेवेन भाषिता ॥ न चातुर्यशतेनापि शार्वा सा हन्यते सती ।
गुरुद्रोहादृते पुंसामित्याह परमेश्वरः ॥ तेण तुमं पि मुएप्पिणु' जइणी
लइ सिवदिक्ख दुक्खसयरीणी। वयणु सुणेवि एउ वरइत्तहो ।
भासइ सइ जिणसमयविरंतरे । घत्ता–किं पुट्ठिहि सामिय सिंधुरहो चडिऊण चडिज्जइ पुणु खरहो ।
लज्जिज्जइ केम सीसु परहो नाविज्जइ नमिउ जिणेसरहो।।१७।। १५
किं बहुणा तेल्लोक्कनमंसिउ .. दुल्लहु मेल्लिवि अरुहपयासिउ । अन्नु धम्मु न मणा वि समीहमि
दुस्सहदुग्गइदुक्खहँ वीहमि । मा मुज्झहि तुम पि पडिवज्जहि .. मिच्छादसणु दइय विवज्जहि । अायण्णेवि एउ वरु जंपइ .
महु वयणेण एण मणु कंपइ। मेल्लिवि सामलंगि सइवाणउ
को किर करइ धम्मु खमणाणउ। ५ जिणदत्तो दुहियाण पुणो पइ
वुत्तउ जइ न वि केम वि कप्पइ। तो तुहुँ पिययम कुरु माहेसरु
अहमवि करमि धम्मु जइणेसरु । पभणइ रुद्ददत्तु जइ हुतउ
करहुँ न देमि धम्मु अरहंतउ । ता तुहुँ करहि केम ता जिणमइ
जंपइ जिणमयम्मि निच्चलमइ । घत्ता-जइ हउँ मि न देमि तुज्झ करहुँ कुलधम्मु कवालिह कम सरहुँ। १०
___ तो संघहि सामि काइँ करहि लइ अलियइँ वयणइँ परिहरहि ॥१८॥
एवं ताण कयाइ पलावें अन्नोन्नं पि कयाइ निसेहें गण बहुकाल कलिलविरत्ती जइ जिणभवणु जाहि जइ जइणहँ तो तइँ हउँ वित्थारमि मारमि जिणमइ भणइ तुहुँ वि जइ गच्छहि १७. १ सुएप्पिए ।
अन्नोन्नं पियधम्मालावें। पुणु कलहेण कयाइ सिणेहें। भणिय रुद्ददत्तेण सपत्ती। दाणु देहि निदियपरवइणहँ । निच्छउ मंदिराउ नीसारमि। ५ हरघरु तवसिहिँ भिक्ख पयच्छहि । ..
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