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१३२ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ११. १२. ८गउ सत्तमनरयो निक्किट्ठहो
अह कि होइ न दंसणभट्ठहो । घत्ता-इयर वि सामंत मंतिपमुह झायंत पंचपहु परमबुह ।। लभ्रूण समाहि मुएवि वउ संपत्त सुहेण सुहासिभउ ।।१२॥ १०
॥ एवं दंसणभट्ठक्खाणं गदं ॥
वणि जिणदासु पासि पाडलिपुरि होतउ जिणपयभत्तउ सुंदरि । सो कयाइ वाणिज्जो निग्गउ
भरियभंडु कंचणदीवहो गउ । तहिँ विढवेवि दब्बु बहु एंतही
कालियदेहु पुव्ववेरें तहो । करेवि पयंडवाउ घणवद्दलु
भासइ संखोहियसायरजलु । जइ जीवित्रण कज्जु तो दूसह
जिणसासणु नत्थि त्ति पघोसह। ५ नं तो सव्वसरीरहो सारउ
छिदमि उत्तमंगु तुम्हारउ । आयण्णेप्पिणु एउ परोहणु
अंदोलिज्जमाणु मणखोहणु । आलोएविणु वणिय वियक्खण'
सयल वि कियअन्नोन्ननिरिक्खण' । जंपहिँ एत्थ काले कि किज्जइ
ता जिणवरदासेण भणिज्जइ । घत्ता-अइदुलहु कयावि न भावियउ जिणदसणु पुण्ण हिँ पावियउ।
मा सुक्खविरमु संसारभउ मा बंभदत्तगइ संभवउ ॥१३॥
सेट्ठिह भासिउ एउ सुणेप्पिणु
दिढमण दुविहाणसणु लएप्पिणु । करकमलंजलि सीसे निवेसिवि
वणि भणंति जिननाहु नमंसिवि । वच्चउ पलउ पोउ जइ वच्चइ
रक्खस करहि कि पि जं रुच्चइ । तो वि अवण्णवाउ भुवणेसहु
करहुँ कयावि न अम्हि जिणेसहु । ता ताणोवसग्गु जाणेप्पिणु
आसणक करुणु करेप्पिणु । ५ झत्ति प्रणावि नामें जक्खें
पेसिउ भव्वजणावइरक्खें। चक्कुत्तरकुरुभूमिहे होतउ
पारसहस्साधारफुरंतउ। सिरकमलम्मि तेण सो ताडिउ
पावयम्मु वडवामुहि पाडिउ । धरिउ पोउ वरुणणावेप्पिणु
लच्छि पराइय कलसु लएप्पिणु । तुरिउ परोहणु तीरु पराणिउ
देवहिँ वाणिवग्गु सम्माणिउ। १० ___घत्ता-गयविग्घ सव्व संपत्त घरु जिणदासें पुच्छिउ जइपवरु ।
तेलोक्कु वि तुह बोहम्मि थिउ कहि सामिय केणुवसग्गु किउ ॥१४॥ १३. १ वियक्खिणि। २ निरिक्खणि ।
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