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११. १२. ७. ] , कहकोसु
[ १३६ नरवइ निरविसेस विज्जाहर
विहिय जेण देवा वि सकिंकर। भोयासत्तहो भोयणकालण
सूवारेण सुवन्नहो थालए। सुकइकहाजुत्ति व जाणंतही
नाणारसरसोइ माणंतहो । आणेप्पिणु तहो अग्गि सवन्नउ
पायसु पुहईनाहहो दिन्नउ । दड्ढउ तेण महाणससारहीं
रुट्ठउ चक्कवट्टि सूयारहो। घत्ता–ता तं कढंतु प्राणावियउ सिरि खीरु [तस्स] घल्लावियउ ।
डझेवि तेण दुक्खेण मुउ रक्खसु सो लवणसमुद्दि हुउ ॥१०॥ २०
परियाणिवि पुव्विल्लउ वइयरु प्राइउ विविहफलाइँ लएप्पिणु फलरसु पासावेवि सराएँ कत्थ इंमाइ पयासियचोज्जइँ भगवेणुत्तु मज्झ मढियासमे एयइँ अवराइँ वि रससार अायण्णेप्पिणु एउ सपरियणु गउ पहु जलकल्लोलरउद्दी तहिँ उवसग्गु तेण पारंभिउ सुमरहि सूययारु उवयारिउ विजयसेणु नामेण पहाणउ धत्ता-लइ वल्लहु देउ को वि सरहि
ता सव्वाहारनिवित्ति किय
भगववेसु विरएवि निसायरु । दिठ्ठ नरिंदु ताइँ ढोएप्पिणु । पुच्छिउ सो अन्नहिँ दिर्ण राएँ । अत्थि फलाइँ अईवमणोज्जइँ। उववणे मज्झि समुद्दहो दुग्गर्म। ५ पत्थिव अत्थि अणेयपयार। जलजाणेण फलासायणमणु । अब्भतरु पइसरिउ समुद्दो । भीसणवेससएहिँ वियंभिउ । हउँ पइँ पप्रण पएप्पिणु मारिउ । १० होतउ रसविसेसविहिजाणउ । महुँ अज्जि जियंतु न उव्वरहि । सामंत मंति सन्नासि थिय ।।११।।
विग्यविणासहेउ सिव सुहयर मंतपहावें चित्ति चवक्कइ चितिवि तेणोवाउ पउत्तउ जइ जिणिदसासणु न समिच्छहि ता भीएण तेण जयपुज्जिय लुहिय कमेण लिहेवि सहावें ता मारेप्पिणु तेण रसायलि
लग्गउ पहु सुमरहुँ पंचक्खर । रक्खु वि तं मारणहँ न सक्कइ । मारमि बंभदत्त न निरुत्तउ । जइ पंच वि पय पाएँ पोंछहि । सिद्ध अणाइ मंत अपरज्जिय ।। वृत्तु नत्थि जिणसासणु पावें। घल्लिउ चक्कवट्टि वडवाणलि ।
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