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सिरिचंदविरइयउ
[ १०. १४. १
१४ एत्तहे सच्चावसर पहु पसरे सहाण निविठ्ठ ।
आवेप्पिणु सेवयसयहिँ पहु पणवेप्पिणु दिछ । उवविट्ठ सव्व दुरिमोहवह
पारद्ध नरिंदें धम्मकह। चारणमुणिगुणसंदोहु थुउ
प्रायण्णिवि लोयहां हरिसु हुउ। परिपुच्छिउ बुज्झिउ धम्मपहु
किं केण वि ते फुडु ट्ठि पहु। ५ भासइ पुहईसरु कल्ले मई
आलोइय चारण सवण सइँ। उवएसिवि संजमसील सया
संघसिरि धम्मि लाएवि गया । तं निसुणिवि विभयभरियमणु
भासइ समग्गु सामंतगणु । हा हुउ विरूवु जं दिट्ठ न वि
चारण मुणि भव्वंभोयरवि । संसयकर के वि कहंति नर
कहिँ किर हवंति मुणि गयणयर । १० पहु भणइ न जइ पत्तियह महुँ
आउच्छह तो संघसिरि तुहुँ । घत्ता-ता राएँ तासु लहु हक्कारउ पट्ठविउ ।
न समीहइ एहुँ दुक्खहिँ अक्खि भणेवि थिउ ॥१४।।
पुणरवि कोक्काविउ किंकरहिँ तो वि न आवइ पावियउ ।
पाऊण पवंचु पएसरेण उच्चाइवि [सहसा-] णावियउ ।। पुच्छिउ वड्ढियमिच्छत्तमलु
कि दिट्टउ चारणजइजुयलु । थिउ मोणे किं पि वि नउ चवइ
किं कहहि न माम भणइ निवइ । पइँ मइँ महएविन [धवलहरे]
अच्छंतहिँ चुंबियअंबुहरे । आलोइय चारण वेन्नि मुणि
निसुणेवि ताण पइँ दिव्वझुणि । पडिगाहिउ धम्मु निरंजणहो
तं पयडहि किं न मज्झे जणहो । कहिँ मुणि कहिँ गयणंगणगमणु
मइँ कि पि न दिठ्ठ एउ वयणु । भासंतहो तो सहसत्ति गया
लोयणमणि विभियलोयसया। महि पडिय नियच्छिवि अच्छि पहु जंपइ दूरुज्झियपावपहु। १० भो अज्ज वि बोल्लहि सच्चु बुह
मा वसुअवत्थ संभवउ तुह । घत्ता--किं कहमि न दिठ्ठ पुणु भणंतु दइवें नडिउ ।
सहसा भूमीण पासणाउ किं पि वि पडिउ ।।१५।।
पुणरवि राएँ सो भणिउ अज्जु वि भासहि सच्चु ।, निक्कारणु अलिएण पुरु माम म पावहि मच्चु ।
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