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________________ १२४ ] सिरिचंदविरइयउ [ १०. १४. १ १४ एत्तहे सच्चावसर पहु पसरे सहाण निविठ्ठ । आवेप्पिणु सेवयसयहिँ पहु पणवेप्पिणु दिछ । उवविट्ठ सव्व दुरिमोहवह पारद्ध नरिंदें धम्मकह। चारणमुणिगुणसंदोहु थुउ प्रायण्णिवि लोयहां हरिसु हुउ। परिपुच्छिउ बुज्झिउ धम्मपहु किं केण वि ते फुडु ट्ठि पहु। ५ भासइ पुहईसरु कल्ले मई आलोइय चारण सवण सइँ। उवएसिवि संजमसील सया संघसिरि धम्मि लाएवि गया । तं निसुणिवि विभयभरियमणु भासइ समग्गु सामंतगणु । हा हुउ विरूवु जं दिट्ठ न वि चारण मुणि भव्वंभोयरवि । संसयकर के वि कहंति नर कहिँ किर हवंति मुणि गयणयर । १० पहु भणइ न जइ पत्तियह महुँ आउच्छह तो संघसिरि तुहुँ । घत्ता-ता राएँ तासु लहु हक्कारउ पट्ठविउ । न समीहइ एहुँ दुक्खहिँ अक्खि भणेवि थिउ ॥१४।। पुणरवि कोक्काविउ किंकरहिँ तो वि न आवइ पावियउ । पाऊण पवंचु पएसरेण उच्चाइवि [सहसा-] णावियउ ।। पुच्छिउ वड्ढियमिच्छत्तमलु कि दिट्टउ चारणजइजुयलु । थिउ मोणे किं पि वि नउ चवइ किं कहहि न माम भणइ निवइ । पइँ मइँ महएविन [धवलहरे] अच्छंतहिँ चुंबियअंबुहरे । आलोइय चारण वेन्नि मुणि निसुणेवि ताण पइँ दिव्वझुणि । पडिगाहिउ धम्मु निरंजणहो तं पयडहि किं न मज्झे जणहो । कहिँ मुणि कहिँ गयणंगणगमणु मइँ कि पि न दिठ्ठ एउ वयणु । भासंतहो तो सहसत्ति गया लोयणमणि विभियलोयसया। महि पडिय नियच्छिवि अच्छि पहु जंपइ दूरुज्झियपावपहु। १० भो अज्ज वि बोल्लहि सच्चु बुह मा वसुअवत्थ संभवउ तुह । घत्ता--किं कहमि न दिठ्ठ पुणु भणंतु दइवें नडिउ । सहसा भूमीण पासणाउ किं पि वि पडिउ ।।१५।। पुणरवि राएँ सो भणिउ अज्जु वि भासहि सच्चु ।, निक्कारणु अलिएण पुरु माम म पावहि मच्चु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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