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________________ १२२ ] सिरिचंदविरइयर [ १०.१०.१ निप्पाएप्पिणु पाउस िवड्ढिउ ताण पवित्तु । तं पर भोयणु सो करइ हरिपाराहणचित्तु ।। परिवायपायपंकयअलिणा यजमाणे तेण कयंजलिणा। धुत्तहो जणमणसयपंजरहो नावइ दहिहंडिय मंजरहो। पणवेप्पिण रंजियजणमणिया तहो तणय समप्पिय अप्पणिया। ५ होज्जसु पुत्तिण सिरि पाय परा अणुदिणु सा भत्ति करेइ वरा । कालें जंतें अणुरत्तमई अवरोप्परु दोहँ वि हूय रई। पच्छन्नहँ माणंतहँ सुरउ गउ वासारत्तु पत्तु सरउ । विप्पो सुय अहिणवपेम्मभरु गउ रयणिहिँ लेवि सुवण्णखरु । निसुणेप्पिणु सोयविसंठुलउ संजायउ विप्पु सुदुब्बलउ। १० सोयाउलु निवइहे पासु गउ तं निवि निवहो कारुण्णु भउ । घत्ता–पेक्षेवि अवत्थ तारिस तासु सीसु धुणिउ । रुद्रुण निवेण वाहरिवि तलवरु भणिउ ।।१०।। रे रे जोएप्पिणु तुरिउ गंपिणु सव्वदिसासु । बंधेप्पिणु सो दुट्ठमणु प्राणहि भगउ हयासु ॥ सव्वत्थ वि तेण स जोइयउ कत्थई पच्छन्नु पलोइयउ । सहुँ बंभणधीयण दावियउ आवेप्पिणु रायो दावियउ । तेण वि धम्माहियारकरणु पुच्छिउ कयदोसदण्डकरणु । तेण वि उवएसिउ सामियहो सनयो अनीइउवसामियहो । जो कन्नासाहसु आयरइ किज्जइ न देव तसु आयरइ । पासंडिउ सिवपयमइमनउ मारिज्जउ निज्जउ खयमनउ । ता राएँ रक्खसभीमवणे नामेण पिउवणे भीमवणे ।। उल्लक्कं दाविवि विहियरउ माराविउ सो लहु विहियरउ । १० दुहियाहे समागमेण ससुही तो सोमसम्मु संजाउ सुही। घत्ता-तहे मरणविहाणु सुर्णेवि सिणेहें संचलिय । बंभणसु र पाव गय तहिँ सोयविसंतुलिय ।।११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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