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११८ ] सिरिचंदविरइयउ
[ १०. २. ३तहो तणउ अणंतवीरु सवणु
सव्वत्थसिद्धि गउ सुद्धमणु । दरिसंतु जणोहहु धम्मदिसि
विहरंतु संतु सिरिहरु वि रिसि । आवेप्पिणु सिरिगिरिसिहरि थिउ एत्तहे पियचंदु विणोयहिउ । ५ उज्जाणि वसंति वसंतभरे
मणहारिमहुरमाहवियसरे। अइमुत्तयमंडवम्मि रसिउ
नाडउ नियंतु अहिणा डसिउ । विसवेयणा पाणेहिँ चुउ
चिंतापवत्तु कुलमति हुउ। हा रज्जभंसु संजाउ किह
अन्नो न धुरंधरु अत्थि इह । जसहरमहरायपहूइ [वइ] |
वटुंति कत्थ परलोयरइ । इय भणिवि गवेसहुँ कज्जकर
संपेसिय सव्वदिसासु नर । घत्ता--पावेप्पिणु सुद्धि आहिंडिवि महि किंकरहिँ ।
आवेप्पिणु वत्त संपाइय संगयकरहिँ ॥२॥
सामि जसोहरु मोक्खपउ तोडेप्पिणु भवपासु ।
गउ अणंतवीरो वि मुणि पंचाणुत्तरवासु ॥ सिरिहरु भयवंतु करंतु तउ
अच्छइ सिरिपव्वइ पहयरउ । निसुणेवि एउ आणंदियउ
गउ तत्थ मंति मुणि वंदियउ । वइयरु पउत्तु जो जेम भउ
पियचंदु कयंतहा पासु गउ । - ५ अन्नो न तुम्ह वंसम्मि नरु
जो जोग्गु पडिच्छइ रज्जभरु । संजाउ वंसवुच्छेउ पहु
जणणीबहिणीउ लोयनिवहु । अणुदियहु सव्ववावारचुउ
अच्छइ विलवंतु अणाहु हुउ । पालिज्जइ जइ राएण पया
गुणवंतभत्ति सव्वण्हुपया। पुज्जिज्जहिँ जइ निद्धयरया
मग्गंतहँ दिज्जइ अत्थु सया । १० वारिज्जइ पररामासु मणु
वहवंधणमोसवयणसुयणु । भोगोवभोगपरिणामवउ
जइ किज्जइ तो गेहे वि तउ । बहु एवमाइवयणेहिँ मणु
संचालिउ आणिउ मुणि भवणु। घत्ता-अह कन्नविसेण जणु आघत्तु न किं करइ ।
सुर पिवइ कवालि दुलहु सिरित्तणु परिहरइ ॥३॥
उच्छवेण अहिसे उ तो करिवि निबद्धउ पटुं। , दुज्जणु चित्ति चमक्कियउ हरिसें सुयणु विस१ ॥
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