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६. १०. ५ ]
ताण महाकल्लाणु मुणंत हँ को जाणइ कयाइ पुणु प्रावइ संसारम्मि प्रति भमंतउ
पुरवरु सव्वपयारहिँ सारउ निवइ नयालउ रिसयदारउ तेण तमि पट्टणि सउ दारहँ भहं [दारि दारि] गुरुभरधर थंभि थंभि अंसियउ विसालउ
सिय जिणा रहँ
mahar मसावि समप्पिथगहणउ
सव्वदा रथंभंसिय जूयहँ
गंपि दिएणेक्ोलग्गिय जइ तुम्हीँ सव्वहँ समु दाइउ तो सप्पुरिसहो तं महु कसम तं पडिवन्नु तेहिँ तापडियउ दिन धणु परिप्रोसिउ बंभणु दिव्वझुणी सुई पढंत उ
धत्ता - एउ वियाणिवि पत्तु मणुयत्तणु मा नासह । विसयासत्ति मुवि प्ररुहधम्मु अब्भासह ||८||
॥ चुल्लक्खाणं गदं ॥ १ ॥
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कहको
जंबूदी पल्लु विविन्नहिँ
देवे
हायणि हायणि जणमर्णाविभयहेउ महल्लउ न उ पुणु माणुसजम्महो निग्गउ ताउ समाणिवि परिवाडि पुणु ६. १ हो ।
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arrafट्टपरि [ - वारु] गणतहं । तिह माणव मणुयत्तणु पावइ । दूसह दुक्खसाइँ सहंतउ ।
मगहादेसि प्रत्थि सयदारउ । जयपसिद्ध नामें सयदारउ । कारिउ मणिमयतोरणधारहं ।
एयारह एयारह सय वर । नवइ नवइ छह छह सोहालउ । एक्क्कर पेडउ जूवारहँ । वेणु व परवचणपवणउ । पासि सिरी सु होइ' जमदूयहँ । जूयार पढेप्पिणु मग्गिय ।
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घत्ता — एक्क वार जइ कह व पुणु समु दाइउ प्रावइ । तिह मणुयच्च पुणो वि जीवु किलेसइँ पावइ ||९||
|| एवं पासयक्खाणं गदं ॥ २ ॥
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प्रवइ एक्कु वाउ सुहदाइउ । देज्जह सव्व वि सव्वसुहंकरु । सहँ एक्कु दाउ विघडियउ । बोल्लिउ जासु न किं सो सज्जणु । च्छिउ पुणु परिवाडि नियंतउ ।
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भरिउ निरंतरु नाणाधन्नहिँ । अवणिज्जंतें एक्केक्का कणि । सो हु याइ समप्पइ पल्लउ । जीउ प्रणेयलक्खजोणीगउ । परिपावइ मणुयत्तु सुहावणु ।
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