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________________ ११० ] सिरिचंदविरइयउ [ ६. ६. ३पुरि पइसंत हो मणिवेयडियउ महु करकंकणु कत्थई वडियउ । तं जाएप्पिणु चोरु वियाणहि निच्छएण नं तो तहुँ जाणहि । गउ आरक्खिउ रायाइट्ठउ तं विक्कंतु हट्टि सो दिट्ठउ । तेण धरेवि झत्ति बंधाविउ नेवि समोसु नरिंदो दाविउ । एहु सामि सो तक्करु पाविउ ता चक्केसरेण मेल्लाविउ । भासिउ हउँ तुह तुट्ठ निरुत्तउ मग्गि मित्त जं चित्तायत्तउ । सो पभणइ महु माय महीवइ जं मग्गइ तं देवि हयावइ । वृत्तु नरिंदें लेवि इहावहि सज्जण नियजणेरि महु दावहि । १० ता गंतूण थेरि तेणाणिय सइँ पुहईसरेण सम्माणिय । भणिउ माग्र उवयारु वरिट्ठउ किउ तुह पुत्तें तें हउँ तुट्ठउ । मग्गि मग्गि जो वरु पडिहासइ भासइ नियवयणण महासइ । घत्ता-जइ अम्हहँ सपसाउ तो पहु एत्तिउ किज्जउ ।। - नियघरु आइ करेवि चोल्लय-भोयणु दिज्जउ ॥६॥ ता सुविहूइ जणमणहरणहिँ हाविवि पुज्जिवि वत्थाहरणहिँ । निययरसोइए भुंजावेप्पिणु पउरयरं च सुवण्णं देप्पिणु । सम्माणेप्पिणु भुवणाणंदें भणियइँ बिन्नि वि ताइँ नरिंदें। महएवीघरु पाइ करेप्पिणु सव्वदेसगामेसु भमेप्पिणु । गेहं गेहं पइँ भुंजेप्पिणु पुणु जेमेज्जह महु घरि एप्पिणु । महिलाणं छन्नवइ वरिट्ठइँ [ देसहँ सहस दुतीस. सिट्ठ'। ] सहसइँ पट्टणाहँ अडयालइँ खेडहँ सोलह ताइँ विसाल। घत्ता-पुरवराहँ चउवीस कंचणपीणियनीसहो । सहसइँ चउवाणवइँ होंति असेस महीसा ॥७॥ ५ नव पवरायर रयणपसाहण धणकणपउरहँ सहलारामहँ विरइयनाणाभक्खपयारहँ चउरासी लक्खइँ गुणसहियह चउरासी कोडिउ सुपसत्थहँ अट्ठारह कोडिउ राउत्तहँ आयरेण घरि घरि भुंजंतहँ ७. १ नवरिद्धइं। सोलह सहस भणिय संवाहण । कोडिउ छन्नवइउ वरगामहँ। सहसइँ तिण्णि [निउण-] सूयारहँ । मत्तकरिंदहँ रहवररहियहँ। पाइक्कहँ संगामसमत्थहँ । अवरहँ पडिसेवयहँ अणंतहँ । वसुवसणाहरणाइँ लहंतहँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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