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________________ सिरिचंदविरइयउ [ ८. १४. ४जं जं धणु करयले करइ सुरधणु सेणपहाणु । तं तं छिन्नइ दइउ जिह बलु अविहंडियमाणु ॥ सामंतहिँ संदरिसियदुहेहिँ जाणिवि अवज्झु अरि पाउहेहिँ । निज्झाइय चित्ति अणंत सत्ति सुरधणुभिच्चेण अमोहसत्ति । खलविज्जपहाउ पडिक्खलंति आगय गयणंगणि पज्जलंति । जयलच्छि नाइँ हरिके उकित्ति नावइ दुरंत पडिभडभवित्ति । सा करि करेवि केसरिधएण अरि भणिउ पणासहि किं मएण। १० नयखयरमउडमाणिक्कराय लइ तुज्झ कुद्ध सुरधणुहिँ पाय । जइ सरणु पईसहि वासवासु पइँ पेसमि तो वि कयंतवासु । निसुणेवि एउ भासिउ बलेण गलगज्जिएण किं निप्फलेण । को तुहुँ को सो तुह तणउ राउ . खणभंगुरु निग्गुणु वंकभाउ । दंसमिइ रे खत कालरत्ति लइ मेल्लि मेल्लि सहसत्ति सत्ति । १५ घत्ता-ता सा तोसेप्पिणु तेण तो मुक्क उरत्थलि सत्ति किह । सव्वह वि धरंतधरंतह पडिय महीहरि विज्जु जिह ।।१४।। वस्तु–पहर पडिभडे इंदधणुबलेण किउ कलयलु तूरसरु सुणिवि अरिहिँ पडियाइँ चित्तइँ । मुक्कइँ हरिके उसिरि सुरहिँ सुरहिकुसुम' विचित्तइँ ॥ अवरु वि जो जसु अभिडिउ सो सो तेण रणम्मि । पायामेप्पिणु निययजसु वित्थारिउ भुवणम्मि ।। ता एत्थंतरि समरमहाभरि । पालियकुलबलु पेच्छिवि नियबलु। प्रावटुंतउ पलयहां जंतउ। बाणासणकरु सुइँ गंगाधरु । अइअमरिसवसु धाइउ सरहसु। दुज्जयविक्कम नं भुक्खिउ जमु। एक्कु अणंतहिँ रइयक्खत्तहिँ । रुद्ध खगिदहिँ करिवरविंदहिँ। जयसिरिमाणणु नं पंचाणणु । दूसहपहरहिँ ते सरनहरहिँ। सीसु धुणाविय भड कडुयाविय । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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