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________________ ८. १७. ३ ] ' कहकोसु निम्मय पबल वि भंजिय सबल वि। गरुडु सभोइ व पवणु पोइ व । चीरु वियारिवि दूरोसारिवि । चोइयपत्तउ तहिं संपत्तउ । जत्थ ससंदणु पहु वासवणु। घत्ता-पच्चारिउ रे अवियाण तुहुँ अज्ज जमें निज्झाइयउ । पहदो' हा दुज्जण दुविणय कहिँ महु जाइ अघाइयउ ॥१५।। १६ वस्तु-रे अलज्जि रे मुक्कमज्जाय मत्त अम्हए मुएवि मंदभाय भूयरहो दिन्नउ । अवियाणियकुलगण हो नारिरयणु जं पइँ रवन्नउ ।। तहाँ फलु अन्नायंधिवहीं दावमि अज्जु अणिठ्ठ । खुडमि रसंतहीं सीसु तुह संभरु देउ मणिर्छ । इय आयण्णेप्पिणु वित्तु सत्तु वाणासणेण विहसेवि वुत्तु । परधणपररमणीहरणचित्त वड्डतरेण भुल्लो सि मित्त । विज्जाहराहे भुयबलविसाल भूगोयर सामिय सयलकाल । किं पासि सुहद्द महीसरेण परिणिय न भद्द भरहेसरेण । सिहिजडिणा किं न सयंपहक्ख सुय दिन्न तिविट्ठहो सिरिसमक्रत । १० भणु किं किउ मइँ अन्नाउ एत्थु जं जंपहि पुणु पुणु अप्पसत्थु । परनिंदणअप्पपसंसणाइँ मणुयहँ सकित्तिविद्धंसणा। जोइयइँ सयंवरि काइँ जाइँ जा जासु विहिय सा तासु जाइ । चिर पुरिसपयासिउ एहु मग्गु अविसिट्ठो पर भावइ अजोग्गु । निक्कारणि जो मारेइ रुठ्ठ सो सामि भणिज्जइ केम दुर्छ। १५ सइ अहवा नरहो विणासकालि नासइ मइ रविदित्ति व वियालि। घत्ता--इय वयणहिँ मम्मंतिमहिँ तो पच्चुद्दीविउ वइरि किह । पज्जलिउ सहोयरु मारुयहाँ निक्खित्तेहिँ तिणेहिँ जिह ॥१६॥ वस्तु-वयणविवरहो मज्झ रे धिट्ठ दप्पिट खल खुद्द तुह अस्थि जीह एहउ चवंतहो । सयखंडई किं न गय पावयम्म गुरुसिक्खवंतहो ॥ १५. १ पहुदो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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