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________________ कहकोसु ८ १४. ३. ] धाविउ ससरासणु सामदेहु वरिसंतु सरहिँ नं पलयमेहु। १० सो रहु न उ सारहि सो न पत्ति सो नेवारोहु न सो वि दंति । सो तुरउ न सो न उ पासवारु सामंतु न सो सामत्थसारु । सो नउ धउ छत्तु न तं विमाणु तं नाउहु न उ जंपाणु जाणु । दस बीस तीस जहिँ सूसुयंत न उ लग्ग मग्गणा तहो फुरंत । सहसत्ति सराहउ सत्तुसेन्नु अोसरिउ समग्गु वि भयविसन्नु । १५ घत्ता-नियसेन्नु निएप्पिणु हणिउ रण पच्चारेप्पिणु पबलबलु । बलवइविज्जाहरसामियहो वलिउ तासु नामेण बलु ।।१२।। वस्तु–बे वि दुद्धर धरणिधरधीर धुरधोरिय बे वि जण भडपहाण पडिभडविमद्दण । सरणागयसामि सुहिकज्जकरण कणयमयसंदण ।। अइपयंड कोयंडकर समरसएहिँ रउद्द । अवरोप्परु ते अत्तुलिय नं सुरसिहरिसमुद्द ।। हरिकेउ परज्जियपरबलेण सरजालें पच्छाइउ बलेण । पहवंतु पहायरु दुद्दिणेण । दिणयरु व नहंगणे नवघणेण । पाडिउ धणु धउ धवलायवत्तु आय हय सारहि धरणि पत्तु । किउ विरहु महारहु रहवरम्मि थिउ अन्नहिँ नवर मणोहरम्मि । एत्थंतरि वइरिविणासहेउ आरुठ्ठ सुठ्ठ भडु सीहकेउ । वरवंसुब्भुउ गुणनमियकाउ सुकलत्तु व अवरु लएवि चाउ । पडिवक्खो पिहियनहंतरालु कप्परिउ खुरप्पहिँ बाणजालु । पत्थेण नाइँ पडिवक्खचित्तु पाडिउ चूडामणि विप्फुरंतु । तिहिँ सरहिँ चाउ धउ छत्तु छिन्नु पंचासहिँ देहावरणु भिन्नु । किउ वियलु बलुद्धरु बलु खणेण केसरिधउ संसिउ सुरयणेण ।। घत्ता–ता बलेण विलक्खीहूयप्रण अवरु सरासणु करवि करे। रक्खेज्जसु पच्चारवि पहउ सरसएण सहसत्ति उरे ॥१३॥ १० १४ वस्तु--झत्ति तिक्खहिँ भिन्नु सन्नाहु कह कह वि हु न वि हियउ दुज्जणेहिँ बाणेहिँ नावइ । गुणधम्मुज्झियहिँ नउ [सम्म-] दिट्ठि संधाणु पावइ । १३. १ सारेहि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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