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८. १०. १७. ] कहकोसु
| ६७ किं माणे जेणावइ अवज्जु
जीवंतहँ होसइ अन्नु रज्जु । इय चरवयणहिँ नयरनरिंदु
चितइ हुउ मलिणमुहारविंदु । बलियउ विज्जाहरराउ आउ
एवहिँ चितिज्जइ को उवाउ । निसुणेवि एउ हयसुयणसल्लु
जंपइ जामाउ जगेक्कमल्लु । १० थिरु थाहि माम आवउ वराउ
दंसमि खलु खलहो कयंतराउ । को सुन्दरमइ अहियावसाणि
पइँ परिहवेइ मइँ जीवमाणि । वयणेण एण पह तहो तणण
अप्पाइउ विंझु व नवघणेण । अवबंभु नियच्छिवि सुंदरासु
जसवंतहो जसयंदावरासु । चितइ सुरधणु अदइच्चु कोइ
सामन्नु अन्नु न हु एहु होइ। १५ अहवा रिसीहिँ पाएसु आसि
किउ होसइ जो गुणरयणरासि । . वरु पुत्तिर्ह तेण रणे दुमेहु
मारिस्सइ' परमत्थेण एहु। ... घत्ता-इय चितिवि नीसंदेहमणु सन्नहेवि सेन्नेण सहु। . .
सूरोदयवइ जामायजुउ अमरिसवसु नीसरिउ लहु ॥९॥
वस्तु–पत्तु एत्तहे ताम तवणीय
संदणसयहयगयहिँ भडथडेहिँ भूयलु निरंतरु । छायंतु चलंतधयवरविमाणनियरेण अंबरु ।। अंधारिउ नं नवघणहिँ नट्ठउ भाणुज्जोउ ।
चउदिसु असिसोदामणिउ नियइ फुरंतिउ लोउ ।।। कयकायरजणमणसंभमाइँ
सुहडोहपयासियसंभमाइँ । बहुभेय संखावज्जियाइँ
उहयाइँ वि वज्जइँ वज्जियाइँ । सद्देण ताहँ वहिरिउ दियंतु
नं हसिउ गिलेप्पिणु जगु कियंतु । थरहरिय धराधर धरणि वीर
संजाय जलहि झलझलियनीर । प्रासंकिय जम-वइसवण-सक्क
डोल्लिय नहि रिक्ख-ससंक-सक्क । १० जणु जंपइ कंपइ काइँ एउ
एत्थंतरि सदु सुणेवि देउ । वेयड्ढनामु वेयड्ढवासि
पहुपुण्णहिँ तत्थायउ सुहासि । हरिसेणहो हरिसवसेण हूउ
जाणाविवि पय पणवेवि सूउ । अन्नोन्नु निएवि समच्छराइँ
दच्छइँ रत्तच्छिनियच्छिराइँ । ....... धावियइँ पवाहियवाहणाइँ
सुरधणुगंगाधरसाहणाइँ।... १५ घत्ता-धावंतहँ सेन्नहँ पयपहउ पंसु पणासियदिट्ठियउ।।
__ नावइ सुहडामरिसानलहो धूमसमूहु समुट्ठियउ ॥१०॥ ६. १. मास्सेइ।
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