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________________ सिरिचंदविरइयउ [ ८.८.१ वस्तु-तो तहे चित्तो को वि न वि पुरिसु पडिहासइ सुंदर वि जइ वि कामु सयमेव वासउ । आणिउ केणावि तउ चित्तपट्ट मोहियजणासउ । तं पेच्छिवि सा सुहय हय सुंदरि निरु कामेण । हउँ संपेसिय ताण तइँ लहुवेया नामेण ।। तहि कारणु सहियहिँ गुणसमग्ग परमेसर हउँ पइँ नेवि' लग्ग । वयणेण एण रूवजियकंतु निहुयउ गउ सिंधूदेविकंतु । संपत्तु तत्थ सोहग्गसारु दिट्ठउ जसचंदन नाइँ मारु । हियवइ न ताहे संतोसु माउ रोमंचमिसेण य पयडु जाउ । चक्केससूरदसणि अणिंदु जायउ पप्फुल्लु महारविंदु। १० संतुठ्ठ सुठ्ठ नहगमणु राउ सहसा सुयाहे सहुँ किउ विवाहु । गंधव्वपुरेसरु' भग्गमाणु गंगाधरु विज्जाहरपहाणु । प्रायण्णिवि पाणिग्गहणु ताहे हरिकंधरु नाइँ सयंपहाहे । आरुठ्ठ सुठ्ठ निठुरकरग्गु भासइ अहिमाणाहयधरग्गु । भो पेच्छह उल्लंघियकमेण । किउ काइँ तेण खयराधमेण । १५ ।। वज्जेप्पिणु विज्जाहर रवण्ण भूगोयरवरहो विइन्न कन्न । परिहउ परमत्थें पहयनेह अम्हहँ तुम्हहँ वि समाणु एहु । - बहुएण किमाहवे वेवि अज्ज मारेवि एहुँ खल ते अलज्ज । अवरो वि को वि जेणेउ कम्म नायरइ कयावि विमुक्कधम्म । घत्ता–इय भासेवि [सइँ रूसेवि] खयरसहासहिँ परियरिउ । २० अवहत्थिवि मंतिसुहासियइँ विज्जाहरवइ नीसरिउ ॥८॥ वस्तु-एत्थ अंतरे गंपि चरनरहिँ जाणाविउ सुरधणुहे देवदेव दुज्जउ महाइउ । विज्जाहरचक्कवइ रूसिऊण तुज्झुवरि आइउ ॥ जं दिन्नउ कन्नारयणु भूगोयरहो पवित्तु । तेणहिमाणघएण फुडु अग्गि व सित्तु पलित्तु ॥ जइ सक्कहि तो तो समुहु थाहि ___ अहवा लइ लहु नीसरिवि जाहि । ८. १ नेमि । २ पुरेसुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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