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________________ ८.७.१८ ] कन्ना मदेणं सहिया विणिग्गदा लग्गाणुमग्गे करिणी प्रकुच्छिया एत्यंतरे अंतरितारिवेयप्रो दट्ठूण रुद्धं भयभिभलं तिणा गंभीरनाएण गयंदवालओ आसा अन्ना नएहि सोहणं मेंठेण सोऊण इणं पउत्तयं अप्पाणयं जें ण गणेसि बंधुरं एवं भणेऊण तिणा सुसामग्री लद्धूण सन्नं लहु धाविकरी ६. कहको ७ वस्तु -- खणि जि पच्छा पुरउ खणि थाइ खित्ताइँ सीसि कुमुमइँ सुरेहिँ परिसिउ पुरु परियणु नरिंदु जो चिरु कहिलो सि वियक्खणेहिँ इय भणिवि नमसिवि निउ निवासु कन्नासएण सहुँ सिंधुदेवि सोवंतु हउ एक्कहिँ दिणम्मि निज्जंतु संतु हरिकेउपुत्तु भणु भद्दे का सि किं खयरि देवि भाइ सा सामि सुणु विचित्ति वेयड्ढहो सेढिहे उत्तराहे सुरधणु नामेण नरेसरासु दुसरं सारसरावि गंगदा । संदाणिदा दाणवदामयच्छिया । तत्थाउ सो पोढपयंगतेयो । कन्नागणं कालनिहेण दंतिणा । वृत्तो अरे वालय वालवालओ' । भेसेसि किं मुद्धकुमारियागणं । धिट्ठो सि तं गोह अरे निरुत्तयं । नो मन्नसे किंपि वि रायसिंधुरं । संचो समुह महामत्रो । तस्साभिवत्तो थिउ रायकेसरी । घत्ता - विरप्पिणु विज्जु खित्तु नहे करणु करेप्पिणु दंतियउ । फालिवि हत्थे कुंभयलु उप्कंदेवि पुणो वि गउ || ६ || खणि गतं तरिवि सइ छिवइ दंतु करिकुंभु खणि खणि । खणि भमइ चउद्दिस विज्जुपुंजु चलु नाइँ नवघणि ॥ हक्कइ रोक्कइ ग्रहणइ खणि खणि सरु ससरेण । नाणाकरणहिँ एव करि किउ वसु चक्कहरेण ॥ Jain Education International घत्ता- - जयचंदजसुज्जल गुणनिलय पुत्ति ३ वालिवाल | ४ उप्फंदिवि । सा किं वणिज्जइ रुवनिहि मुणि वि मयणवसु जंति जहिँ ॥७॥ ७. १ पप्फुल्लपउयवत्तु । [ ६५ For Private & Personal Use Only १० गाउ नहि साहसु किन्नरेहिँ । जामाउ दिट्ठ वसिकयकरिंदु | सो सदिट्ठो सिसईक्खहिँ । सम्माणिउ ससुरें सिरिनिवासु । दिनी विवाहु किउ विहि रएवि । १० निउ खयर हरिवि नहंगणम्मि । पुच्छइ पप्फुल्लयपउमवत्तु' । संचल्लिय तुहुँ मइँ कहिँ लएवि । जंबूदीवंतरि भरहखेत्ति । सूरोदयनयरि गुणुत्तराहे । पिय बुद्धिमई रइ नं सरासु । पवित्तप्पन्न तहिँ । १५ ५ १५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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