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७. १०.१५] , कहकोसु
[ ८३ पाविज्जइ मणि धन्नु धणु अवरु वि जं जं चारु ।
एक्कु न लब्भइ भाइ निउ जइ गम्मइ परपार ॥ भासइ कणिठ्ठ उज्झियविसुद्धि
मज्झ वि उप्पज्जइ एह बुद्धि । किं बहुणा एण न किं पि कज्जु
लइ आयो पावही पडउ वज्जु । इय मंतिऊण दुम्मइनिमित्तु
दोहिँ मि वत्तवइदहम्मि खित्तु । मच्छेण निएप्पिणु निवडमाणु
सो गिलिउ झत्ति पलदल समाणु । तहिँ होंत सहोयर घरहो आय
आलोयवि पुत्त पहिट्ठ माय । १० ता ताण निमित्तें न किउ खेउ
गय हट्टो मीणाणयणहेउ । एत्तहं तं मारणकयधिएण
सो बद्ध मच्छु मच्छंधिएण । बहुमोल्लु वियाणेवि गरुउ मीणु
गउ विक्कहुँ पुरु पयगइपवीणु । परितुट्ठ पोढु पाढीणु लेवि
गय सूरदत्त तो मोल्लु देवि । घत्ता-गंपिणु मंदिर गयमंदगइ जाम वियारइ रोहि सइ ।
ता जलजलंतु उइयक्कनिहु रयणु निहालइ साहु सइ ॥९॥
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वस्तु-तं निएप्पिणु जाउ दुव्भाउ
संचितइ देवि विसु दारयाइँ विण्णि वि वहेप्पिणु । एक्कल्लिय लेवि हउँ सुहु कयत्थ अच्छमि हवेप्पिणु । पुणु वि पडीवउ चिंतियउ हा हा एउ अजुत्तु ।
जं अत्थत्थें सुहि सयणु मारिज्जइ पिउ पुत्तु ।। बहुदिहिं कहव पुण्णेहिँ रम्मु
आयहँ कह हम्मइ तणुयजुम्मु । एयहाँ निमित्त कयविणयजुत्ति
हा हम्मइ केम' मणोज्ज पुत्ति । इय चिंतिऊण सुंदरमुहाहे
तं रयणु समप्पिउ तणुरुहाहे । जीवउ मुहेण एया आणेण
जीवेसमि तणयाणियधणेण । दुहियाण वि चितिउ तं लहेवि
एयाइँ विणासमि गरलु देवि । १० एक्कल्लियाहे जें मझु एउ
पावइ माणिक्कु महंततेउ। सयमेव समुज्झिउ पुणु वि ताण
तं अप्पिउ मायहे कयदयाए । भुंजाविवि पहसमसमियगत्त
वीसमिय सयणि निसिसमण पुत्त । करकमलहिँ लालिवि सुंदरीश
आउच्छिय विनि वि मायरी। कहिँ गय कहिँ अच्छिय किं विढत्तु
ता कहइ नवेप्पिणु सूरदत्तु । १५ ६. १ उयक्कनिहु । २ सउ १०. १ सहुं । २ केण ।
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