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________________ ८२ ] महवि तासु सइ सूरसेण गब्भेसरु जणमणजणियहिट्ठि तहो कंत सूरदत्ता हिहाण पढमिल्लु नियन्नयगयणमित्तु बीयउ सुहिसज्जणकुमुयचंदु तइया मित्तमइ मणोज्ज पुत्ति वणिवइहे हूउ कालेण कालु वस्तु -- तत्थ पत्तउ सयलमहिमोल्लु सिरिचंद विरइयउ घत्ता --- पेक्खविणु घरे दालिदुहु दोन्नि वि भायर नीसरिय । प्रत्थत्थिय हिंडिवि सयल महि सिंघलदीव पईसरिय ||७|| हत्थम्मि हवइ तं जासु जासु जइ जेट्टो करे तं चडइ पाउ लहु विमुणइ मारेवि जेठु अवरोप्परु पुणु सयमेव बे वि इ हत्था हत्थि समप्पमाण दियहिँ पत्त नयरहो समीउ वीसामु करेप्पिणु सूरमित्तु महु कज्जु न एण मणोज्जवाय पुच्छिउ रविचंदें कयविवेउ किं कारण सलु विमज्झु देहि वस्तु Jain Education International ८ रइ रंभ नाइँ रामा मिसेण I सुइ सूरदत्तु पुहईससेट्ठि । हुत्त विनित गुणनिहाण | नामेण पसिद्धउ सूरमित्तु । अन्नामलुज्झिउ सूरचंदु | संजाय ता नं मयणजुत्ति । गउ तेण समउ जिम वसु विसालु । २० कह कह व महारयणु सूरबिंबसमतेयवंतउ । तं लेवि पट्ठिमण चलिय सपुरु बहुगुणनिउत्तर ॥ एत संत एक्क्कु दिणु वर्ण परिवाडि भाइ । एक्कु निहाल तं रणु एक्कु वि भिक्खहे जाइ ॥ [ ७.७.१४ धत्ता -ता कहिउ तेण तहो एउ महु जामच्छइ करम्मि रयणु । एक्कु जि गिरहमि हणमि पइँ होइ एउ ता निच्च मणु ||८|| ९ - जाउ मसाणहो वत्थु तं सव्वु जं बंधुविप्रयकरु काइँ तेण सुंदर सुवणेण । जं तोडइ कण्ण दुहकारणेण भणु तहिँ किमन्त्रेण ॥ दुम्मइ परिवड्ढइ तासु तासु । तो तो लहुमारणि हुवइ भाउ मणि लेमि एउ एक्कु जि वरिट्ठ । हा इउ अकज्जु अच्छउ भणेवि । अन्नोन विघाउ वियप्पमाण । वेत्तवइतीरि कुलहरपईउ । भासइ विसेवि विसन्नचित्तु । इतुहुँ जि उ माणिक्कु भाइ । तुम्हाँ महं पि सामन्नु एउ | [तं मज्झु ] परमबंधव कहेहि । For Private & Personal Use Only १५ ५ १० १५ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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