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सिरिचंदविरइयउ
[ ७. ४. १८-- कीदशाः किल जिनकल्पिनो भवन्तीति कथ्यते
जिदरागदोसमोहा उवसग्गपरीसहारिवेगसहा ।
विहरंति जिणा इव ते तेण हु जिणकप्पिया होति ।। घत्ता-तं निएवि निवाइबहुउ जणु संजायउ जिणधम्मरउ।
_देवो वि हवेवि कयत्थमणु मुणि पणवेप्पिणु सग्गु गउ ॥४॥
वस्तु-गलिए काला निवि तित्थाइँ
पुवाउ पावंतु मुणि नायदत्तु तवगुणवरिट्ठउ । पच्चंतचरेण वणि सूरदत्तराएण दिट्ठउ ॥ भासिउ तो पुरिसे हिँ पहु एतहि बद्धउ पंथु ।
अम्हइँ निवपल्लीहे इह कहिं आयउ निग्गंथु ॥ एत्थेव धरिज्जण एहु ताम
प्रागच्छइ पत्थिवपल्लि जाम । नं तो अक्खेसइ गंपि वत्त
तं सुणिवि भिल्लपहुणा पउत्त। मा धरहु जंतु न करंति चिंत
ए कासु वि अरिसुहिसरिसचित्त । ता तेहिँ विसज्जिउ मुणिपहाणु
जामग्गइ गच्छइ गुणनिहाणु । सुय लेवि एंति कोसंवि माय
तामंतरि मिलय सबलसहाय। १० दठूण सपुत्तिण ती पुत्तु
मुणि नायदत्तु नविऊण वृत्त । भयवंत एत्थ किं अत्थि नत्थि
भउ कहसु सकिव भवभयपमत्थि । साहू वि समुज्झियरायदोसु ।
थिउ तुहिक्कउ सुविसुद्धलेसु । इय पुच्छिवि पुरउ चलंति जाम
चउदिसहिँ समुट्ठिय चोर ताम । असरालहिँ सरजालहिँ वणंत
लइ मारि मारि हणु हणु भणंत । १५ बहु तक्कर काइँ करंति वीर
मुय सामिकज्जि जुज्झवि धीर । भयकंपिरु कायरजणु पलाणु
लइयउ धणु तेणहिँ अप्पमाणु । बंधेवि ताउ दोन्नि वि जणीउ
नीयउ नियपल्लिहिँ दुम्मणीउ । घत्ता-रविदत्ते रत्ति सहाभवणे संठिएण सुहडासप्रण ।
सुहगोट्ठिए अच्छंतेण तहिँ भणिय भिच्च तुट्ठासप्रण ॥५॥ २०
वस्तु-सो धरिज्जइ मा हु तुम्हेहिँ
इय भासिउ सव्वहिँ वि पहु निरुद्ध पुहईसपल्लिहे । अम्हेहिँ जाएवि इमु फुडु निसेहु काही इहंतिहे ॥
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