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________________ कहकोसु. ७. ४. १७ ] . [ ७६ सुणेप्पिणु एउ पयंपइ पाणु इमो फणि दिट्ठिविसो हियपाणु । अगम्मु महोसहिमतहिँ दुठ्ठ इमस्स विराउ वि संकइ सुठ्ठ। १० हसेविणु जंपइ ता जुवराउ करेसइ काइँ किरेहु वराउ । महं महमंतसुमंडलमुद्द विहाणपरस्स सुमुंच रउद्द। . : तुरंतु तिणा तउ सप्पु विमुक्कु कयंतु व भूवइपुत्तही ढुक्कु। समग्गु वि लंघिवि तेण विहाणु निवंगउ खद्ध गुणोहनिहाणु । विसें निविसेरण वि विग्गहु चिन्नु निवण्णु धरायलि रुक्खु व छिन्नु । १५ नियच्छिवि तं भयभंतमणेण विमुक्कउ धाहउ बंधुजणेण। निवेण तनो सहसा सपइज्ज अणेय पवीण अणाविवि वेज्ज । पउत्त पयत्तपरेण करेहु विसक्खउ पुत्तो जीविउ देहु । पत्ता–ता तेहिँ वियाणिवि लक्खणहिँ कहिउ निवहां सोयाउरहो । प्रहु कालठ्ठ देवा वि नउ जीवावहिँ गउ जमपुरहो ॥३॥ २० वस्तु-मुणिवि राएँ एउ मायंगु मिल्लतेणंसुइँ गग्गिराण सगिराण वुत्तउ । जीवावहि पुत्तु तुहुँ देमि अद्ध रज्जही निरुत्तउ ।। भासिउ चंडालेण पहु अत्थि एक्कु महु मंतु । तासु पहावें सुंदरहीं संजीवइ तुह पुत्तु ॥ एसो मई मज्जायाए लद्ध जो जीवाविज्जइ सप्पखद्ध । तेणेह महीस मणोहेरण दूरहो प्रोसारियगरभरेण । सो जइ निग्गंथु हवेवि चारु जिणदिक्ख लेइ उज्झियवियारु । तो जीवावेज्जसु भणिवि एउ दिन्नउ गुरुणा महु मंतु देउ। जइ एउ समिच्छइ नंदणेसु तो वाहमि मंतु विसोहणेसु। राएण पउत्तउ एव होउ छुडु जीवउ पुत्तु पलाउ सोउ । डोंबेण फुराविय निययसत्ति उट्ठाविउ निवनंदणु झडत्ति । संतुट्ठ सव्व थुइ विहिय तासु एवड्डु भुवणि माहप्पु कासु । ता जीवियव्वविहि वज्जरेवि दमवरमुणिपायसमीवि नेवि । सुउ धम्मु सुणाविवि राणएण लेवा विउ तउ सुवियाणएण। एत्थंतरि देवें पुव्ववित्तु । संबंधु जणाविउ रायउत्तु। कालेण वियाणिवि गुणविसेसु हुउ सो जिणकप्पिउ सुद्धलेसु । १०. १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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