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________________ ७४ । सिरिचंदविरइयउ [ ६. २२.५रूवगुणहिँ मुणिहि वि मणभामिणि पोमलच्छि तहां सुहमणभामिणि। ५ एक्कहिँ दिणि चउखंधावारें सो सहु सव्वें खंधावारें। पोयणपुरु ससरियहरिणायो गउ रायरे उप्परि हरिणायहो । किउ कयकोट्टारोहें सो वसु इच्छियसेवसमप्पियबहुवसु । तत्थ समारिउ थंभसहासें । जिणवरमंदिरु सत्तुसहासें । सहसकूडनामेण जिणालउ तेण पलोइउ सुटु सुहालउ । १० अहमवि हत्थिणपुरवरि एहउ सव्वावइहरु यदुरिएहउ । कारावमि इय चितिवि पउरहो लेहु विसज्जिउ संपयपउरहो। तद्यथा-स्वस्ति श्री पोदनपुरात् महाराजाधिराजपरमेश्वरः श्री पद्मनरेन्द्रो हस्तिनागपुरे समरत जनमाज्ञापयति यथा स्तंभहस्त्राणां बहूनां संग्रहः कर्तव्यश्चत्यायतननिमित्तमिति वाचयित्वा कथितम् ॥ १५ । घत्ता-लद्धाणे ता थाणे पोढतरुणवयसाणं । बलनिग्गहु कउ संगहु वहुवोक्कडसहसाणं ॥२२॥ २३ दुवई-एत्तहे लद्धविजउ वीसंभरु विसमाहियहियावली । संपत्तो नरिंदचूडामणि कुस्नाहो महाबली ॥ उच्छवेण नियनयर पइट्ठउ गंपि गेहु हरिवीढुवइट्ठउ । पहुदंसणमणु विविहोवायणु गउ वद्धावउ सयलु महायणु । नंद वट्ट जय जीय भणेप्पिण पुरउ निविट्ठउ पय पणवेप्पिणु। ५ सरहसु सुहदिट्ठी नियच्छिउ राएँ कयसम्माणे पुच्छिउ । देवहु कारणि दुक्कियनिग्गहु विरइउ थंभसहासह संगहु । ता तुरंतु नयरेणाणाविउ वोक्कडविंदु नरिंदो दाविउ । तं निएवि पुहईसरु र?उ पभणिउ हणहु एहु जणु दुट्ठउ । भासिउ भीयहिँ तेहिँ नरेसर एत्थु न अम्ह दोसु परमेसर। १० सच्चउ दोसवंतु सो लेहउ वाइउ जेण थब्भ' इदि एहउ । घत्ता-अकसाएँ ता राएँ हक्कारेवि दुज्झायउ। विच्छारिवि नीसारिवि घल्लिउ सो दुव्वायउ ॥२३॥ २४ दुवई–एउ वियाणिऊण सुयणाणं वंजणअत्थहीणयं । - न पढिज्जइ मणा वि संसयसयणिण्णासंणपवाणयं ।। | .......... ॥ एवं वंजणत्यहीणक्खाणं गदं ॥... १ थंभ ।......... .. २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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