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६. २२. ४. ] , कहकोसु
[ ७३ इय जिह जिह वक्खाणिवि कहियउ तिह तिह भूवइभज्जइँ विहियउ । पुत्तु समप्पिउ जयविक्खायहीं
पढइ पासि सो गग्गुवझायो । गग्गहो भोयणकालि विसाला
सुट्ठ सुयंधु सुवण्णहो थालण। १५ सरलु विरलु धवलुज्जलु सालिहे
कूरु पवाहिं सहुँ घयनालिहे । धत्ता-परिसेप्पिणु पीसेप्पिणु खिप्पइ उवरि इंगालउ ।
जयपुज्जहो तहो अज्जो जाउ जीउ असुहालउ ॥२०॥
दुवई-भुंजइ तं पि करइ किर काइँ परव्वस्सु सुयणु पंडिप्रो।
चिंतइ अवस एहु रायाणं आयारो अखंडियो। जेणुज्झायहो गउरवु किज्जइ
निच्चमेव मसिभोयणु दिज्जइ । इय परिभाविवि मोणेणच्छइ
अणुदिणु सत्थुवएसु पयच्छइ । कालें रायकुमारु वि जायउ
सुंदरु सत्थन्नउ निम्मायउ। एत्तहिँ वइरि वहेप्पिणु आएँ
पुच्छिउ कुसलवत्त गुणराएँ। भासिउ गग्गें कुसलु नरेसर
जं दिट्ठो सि अज्जु परमेसर । एत्तिउ पर अकुसलु गरुयारउ
जं दुक्कर आयार तुहारउ । केरिसु जं उज्झायो खिप्पइ
प्राणिवि खीरोवरि मसि घिप्पइ । भणइ राउ अम्हाण न एसो
आयारो गुणिजणियकिलेसो। १० कहि कहि केम एउ संजायउ
पइँ संपेसिय लेहापायउ। ताम नृवेण लेहु आणाविउ
सइँ हत्थेण लेवि परिभाविउ । आचार्यस्य शालिभक्तं घृतं च मसिं च दातव्यमिति । कहियत्थेण राउ रोसाविउ
वायउ मसिभोयणु भुंजाविउ । घत्ता-दंडेप्पिणु मुंडेप्पिणु विल्लनिबंधु करेप्पिणु ।
रोहिवि खरि भामिवि पुरि घल्लिउ नीसारेप्पिणु ॥२१॥
२२ दुवई-साहू वि य पढंतु अत्थेणं हीणं एवमाइयं । इहभवि परभवम्मि परिपावइ दूसहदुक्खसाइयं ॥
॥ एवं अत्यहीणवखाणं गदं ॥ करिउरि परपत्थिवपोमाणणु
अस्थि नरिंदु पोमु पोमाणणु । परवसुपरवहुमंसमहुव्वउ
जिनमुणिपायपउम्ममहुव्वउ ।।
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