________________
कहको
६. २५. १४. ]. सिरि सोरट्टदेसि गिरिनयर धम्मसेण तहो देवि मणोहर सुहमइ सव्वसत्थपारंगउ दुद्धरपंचमहव्वयधारउ . तत्थेव य धरसेणु महामुणि सीसहो वि सत्थत्थु कहतें एक्कहिँ दिणि निसि पच्छिमजामप्र पढमवयस वे वसह सदक्षिण वयणु निएयमाण मणहिट्ठिय ता दक्खिणदेसाउ समाया
[ ७५ पट्टणि धम्मसेणु पहु नयरण। नं सइ सक्कहीं पीणपोहर । उग्गदित्ततवतावकिसंगउ । ५ कामकोहभयमोहवियारउ। अत्थि तिलोयवंदु नवघणझुणि । चंदगुहोयरम्मि निवसंतें। सुइणु पलोइउ तेणहिरामण । धवलवण्ण दाऊण तिपक्खिण। १० पय पणवेप्पिणु पुरउ परिट्ठिय । वेन्नि साहु तहिँ जयविक्खाया।
घत्ता-भूयबली भूयबली कयकामो मइवंतउ ।
सुविणीयउ तह वीयउ पुप्फयंतु मलचत्तउ ॥२४॥
दुवई-परियंचेवि तेहिँ पणवेवि पउत्तउ पउरविज्जनो।
सामिय वायणा सिद्धंतहो अम्ह पसाउ किज्जो ॥
५
आयण्णेप्पिणु एउ मुणिदें बुद्धिपरिक्खाहेउ रवण्णउ एक्कहो एक्कमणहो हीणक्खरु ता एयंति वे वि उववासिय एक्के दिट्ठ देवि एक्कक्खिय चिंतिउ देवसहाउ न एहउ एउ वियप्पिवि जोइयछंदहिँ साहिवि मंतजाउ आढत्तउ गंपि गणेसहो पाय नमंसिय तेण वि मइपयासु तहु केरउ कयसिद्धंतहा अत्थपउंजण सम्मत्तम्मि तम्मि आवेप्पिणु
ते पडिगायि भुवणाणंदें। सुहदिणि वे विज्जाउ विइण्णउ । अन्नहो दिन्नु मंतु अहियक्खरु। संठिय ते विज्जब्भासासिय । अवरें उदंतुरिय निरिक्खिय । मंतदोसु इमु नीसंदेहउ । हीणाहियउ तेहिँ नित्तंदहिँ । दिट्ठउ देविउ सोहणगत्तउ। सव्व वत्त जहवित्त पयासिय । पेक्खिवि जणमणजणियच्छेरउ । जाया ते पवीण विनि वि जण । पुज्जिय देवहिँ ते पणवेप्पिणु ।
१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org