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________________ ६. ५. १३. ] , कहकोसु दुवई-अन्नहँ एह सत्ति संभवइ न जणमणचोज्जदाइणी । अत्थि परेक्क मज्झ जलथंभिणि विज्जा विज्जभाइणी । लब्भइ अवर एह जइ विज्जय परमविज्ज खयरामरपुज्जिय । तो महु को वि न जाइ अखद्धउ इय अवधारिवि तहाँ कुढि लग्गउ । पणउ करेप्पिणु करु जोडेप्पिण पुच्छइ ताइँ समीवि हवेप्पिणु। ५ के तुम्हइँ कि कज्जेणायइँ संघह करह केम फुडु आयइँ। सूयइँ अइअच्चब्भुयभूय: जणमणविभणियाइँ वहूय। कहइ खयरु तुम्हहि वि नियच्छिय अम्ह जाइ मायंगी कुच्छिय । पुच्छह जं आगमणु अठायइँ इहु पुरमेव भमंतइँ आयइँ। पायरियण एक्केण सपणयहँ दिन्न विज्ज अम्हहँ कयविणयहँ । १० ताहे पहावें जणमणहार रूवइँ करहुँ अणेयपयार। भासई भगउ पसाउ विहिज्जउ अम्हहँ एह विज्ज ढोइज्जउ । ... भणइ पाणु जं तुम्हहँ दिज्जइ सच्चउ तं परेक्कु सलहिज्जइ । घत्ता-अप्पवसी तं तवसी किं तुम्हहँ दुक्कियरउ। गुणजणएँ विणु विणएँ सिज्झइ मंतु न नीरउ ॥४॥ १५ दुवई-जत्थम्हइँ निएसि जइ तत्थ विसज्जिउ माणगारउ । करवि तिपदक्खिणाउ पणवेवि पयासियभत्तिभारउ ॥ सामिय तुम्हहँ पायपसाएँ जीवमि चिंतियसोवखउवाएँ । पभणहि एउ असंसउ तो तुह सिज्झइ विज्ज न इयरहो भो बुह । भासइ सुप्पइठ्ठ दिहिगारउ करमि सव्वु भासिउ तुम्हारउ। ५ देहि विज्ज ता दिन्न समिच्छिय तेण वि भत्तिपरेण पडिच्छिय । विन्नासेप्पिणि सुइरु सहत्थे सिद्धि वियाणेप्पिणु परमत्थें । देवि पदक्खिणाउ पणवेप्पिणु गउ राउलु जय गुरु पभणेप्पिणु । पुच्छिय राएँ भुंजियभोयणु भयवं अज्ज काइँ लाइउ खणु । भासइ सो निव सव्वसुहावउ जो किउ एत्तियकालु महावउ। १० सो संपुण्णु अज्जु संजायउ बंभु विण्हु माहेसरु पायउ। अवर वि देव महामहिमाहर गण गंधव्व जक्ख विज्जाहर। उच्छवेण पुज्जेवि नमंसिवि गय सयल वि मं सुइरु पसंसिवि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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