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________________ ६२ ] सिरिचंदविरइयउ [ ६. २.७जाहि मुद्ध मा विभयं इमो मंदबुद्धि अन्नायसंजमो। कुपहधम्मरायाणुरंजिओ पावयम्मु परमत्थवज्जियो । खेयरीण निसुणेवि विप्पियं गुरुदुगुंछणं नाहजंपियं । भासियं विसुद्धे पसिद्धए अकण णोवमे णा सिद्धए। १० पुज्जणिज्जि अवियारणि ज्जए हेउवाइणावाहणिज्जए। वेयवयणि एसो णुरत्तो विण्हुदेवपयपोमभत्तो । धीरवीरु कयपरमनिट्ठो सुद्ध बुद्ध तवसी वरिढो । सव्वसत्तहिउ कसु न रुच्चए कहसु केम अन्नाणु वुच्चए । अन्नु धम्मु अन्नो तवोहणो | जइवि सु? तउ तवइ सोहणो। १५ तो वि चित्तसंवित्ति नावए अडयणाहिँ हिरिभाउ नावए । परदुगुंछणं अप्पसंसणं भणिउ एइ सप्पुरिसदूसणं । घत्ता–ता धुत्ते पिय कंतें भणिय म एम वियप्पहि । आयडंभु परमत्थे भणमि हियत्थें अमुणंती मा कुप्पहि ॥२॥ दुवई-किं बहुएण भद्दि दक्खालमि तवमाहप्पु प्रायहो । __ एहि भणेवि ती सहुँ खेयर प्रोयरियउ विहायहो ।। गहियमंसचम्मइँ कुणिमंग जायइँ बे वि जणइँ मायंग। उवरि गपि जंगलु पक्खालहुँ पारद्धउ तं मणु संचालहुँ। दूसिउ जलु दुग्गंधे भग्गउ जाणवि उवरि व्हाहुँ सो लग्गउ । ५ वणरुहपूयपवाहें भूसिउ पुणरवि उवरि गपि पउ दूसिउ । छड्डेवि तं पएसु अन्नत्तहे गउ भगो पवित्तु जलु जेत्तहो । बहु वाराउ एम चंडालहिँ खब्भालिउ कयमायाजालहिँ। मेल्लिवि ण्हाण जाउ आरूसिवि थिय अोसरिवि ताइँ सो दूसिवि । एत्तहे पेक्खंतही तहो सोहणु पवरुज्जाणु नरामरमोहणु । वेउव्विउ पासाउ रवण्णउ नं सुरवइविमाणु अवइण्णउ । हेमुज्जलहिंदोले वलग्गउ जुवईयणु सोहाइ समग्गउ । गमणागमणु नहंगणि दाविउ विविहरसोइए जणु जेमाविउ । अवरामो वि अर्णयउ पाणे रइयउ किरियउ विज्जापाणें । विभिउ तं निएवि परिवायउ चित्तण हरिसुद्धूसियकायउ। १५ घत्ता-जगमन्नइँ सामण्णइँ एयइँ होति न पाणइँ । . गुणिसेवइँ अह देवइँ विज्जाहरइँ पहाण ॥३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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