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________________ सरिचंडविरइयउ [ ६. ५. १४बहुवारहु य तेण सराएँ पुच्छिउ एउ सुणेवि स राएँ ।। किं फहाउ तहो तेण कहिज्जइ जं चितिज्जइ तं पाविज्जइ । १५ घत्ता-तं निसुणेवि सिरु विहुणेवि विभिएण धणसेणें । सो नवियउ विन्नवियउ अरिविहंगगणसेणें ॥५॥ दुवई-दावसि नियतवस्स माहप्पं भो भयवंत सोहणं । संबोहहि जणोहु जणवल्लह कुरु संसयनिरोहणं ।। भगवेणुत्तउ एवहिँ अच्छउ पसरि नराहिव दावमि निच्छउ । सबलु सवाहणु एउ करेज्जसु आमंतिउ मढियह आवेज्जसु । भोयणभूसणाइविहि सयल वि हउँ जि करेसमि सकुलंबररवि। ५ एम भणेप्पिणु गउ परिवायउ विगय विहावरि वासरु जायउ । सुप्पइट्ठ गुरुपायपरोरुह पुज्जहुँ चलिउ राउ पुज्जारुह । आवउ सव्वु को वि इय घोसण देवि सधम्मपक्खपरिपोसण । संगयपउरपउरपरियणजणु गउ नरिंदु तहिँ कोऊहलमणु । दिठ्ठ नमंसिउ जयजयकारें पुज्जिउ सो निवेण परिवारें। १० । अवरेहिँ मि भत्तीश नमंसिउ तेण वि नियसामत्थु पयासिउ। परमुज्जाणु विविहरुक्खाउलु पट्टणु दिव्वु एक्कु किउ राउलु । तत्थ नरेसरु प्रावासाविउ चारुरसोइए जणु जेमाविउ । - तंबोलइँ कुसुमाइँ सुयंध वत्थइँ आहरणाइँ संगधइँ । जं जसु जोग्गु तासु तं दिन्नउ हीणदीणदालिदु विहिन्नउ । १५ घत्ता-अन्नहो नउ एहउ तउ अत्थि समीहियदायउ । विभियमइ पुहवीवइ एव सुठ्ठ संजायउ ॥६॥ दुवई-एउ निएवि विण्हुधम्मम्मि समग्गु वि लोउ लग्गयो । मायंगाइँ ताइँ एत्थंतरि एव ठियाइँ अग्गयो । धिद्धी कहिँ एयाइँ अभद्दइँ प्रायइँ पावरयाइँ रउद्दइँ । अट्ठव्वइँ दुट्ठ मारो लेहु लेहु लहु दूरोसारहो । इय भगवहो वयणेण जणोहें कह व न मारियाइँ कयकोहें। निन्भत्थेवि ताइँ निद्धाडिवि घल्लियाइँ उवलहिँ अइताडिवि । तेसु गएसु विउव्वण नट्ठी रायो संक मणम्मि पइट्ठी । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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