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________________ सिरिचंदविरहयउ [ ५. ६. १३ चितियमइणा तं निवि तिणा। पुज्जेवि सई थुय सा सुमई। इयरहँ वि तउ गुरु दंडु कउ । नाऊण इणं नविऊण जिणं । धत्ता-अवरेणावि सया वि हु भव्वेणप्पणउ । निदेवउ छिदेवउ दुट्ठवियप्पणउ' ॥९॥ सो वि य अविहेयकलत्तवसु झिज्जइ फुडु थेरहा तरुणि विसु । सोवइ अण्णे पावासयए एक्कहिँ दिणे मारिउ सपइ तए। मारइ मारावइ सइँ मरइ तं नत्थि जं न तियमइ करइ । छज्जियहे छुहेप्पिणु जाररया तं घल्लहुँ निसि पिउवणहो गया । जणपच्चयकारणु धुत्तियए । थंभिय देवी निउत्तियण'। ५ अच्छोडइ ताडइ उल्ललइ पेल्लइ करेहि वेवइ वलइ । सिरु धुणइ समुटुइ वइसइ वि पारडइ पडइ सा नउ तइ वि । जिह जिह विहि पवहइ पारसइ तिह तिह अईव देवय हसइ । घत्ता-हुय निफंदुड्डे वि नाइ नवाहु पसु । विगय विहावरि दुक्खें पिउवर्ण कहव तसु ॥१०॥ १० ता भणइ देवि सद्धम्मचुया किं तउ हयासि दुब्बुद्धि हुया । जें पहउ सपइ हले धम्ममइ - तेणेह तुज्झ संजाय गइ।::, जइ पयडहि नियदुच्चरिउ जणे... । तो फिट्टइ वुल्लियदुट्ठमणे । . तं सुणिवि ताण असुहाउलए पइसिवि पुरे धम्मनयाउलए । उब्भासिउ भो भो पउरजणि . मइँ जेही का वि म होउ धणि । ५ जारहो कारणि रइबुद्धियए . परिहासचुयश नियबुद्धियए । . सइँ वहिउ जाण भत्तारु निउ एत्थच्छइ पेच्छह परमदिउ । भासंतिहे एउ ताहिँ चलिउ सहुँ कुच्छियाए दुक्किउ गलिउ । अवरेण वि धम्म ठिएण इउ । जाणेविणु जीवें अप्पहिउ। . घत्ता-गुरुपयपोम समासिवि दुक्कियगरहणउ । १० अवसमेव कायव्बड़ कम्मनिरोहणउ ॥११॥ ६. १ 'वियप्प दुव्वयणहिं भणइ । १०. १ थंभिउ देविए तं निउत्तियए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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