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________________ ५. ६. १२.. ], . कहको पुच्छिय किं कज्जे जणियदुहु पुणु पुणु वि पवोल्लहि एउ तुहुँ । ता कन्नण अत्थु पदरिसियउ तं सुणिवि नरेसरु हरिसियउ । घत्ता-वयणपउत्तिवियक्खण जाणेवि पुहइवइ । किय महएवि विवाहिवि राएँ बुद्धिमइ ॥७॥ सयलु वि तं मुद्दय़ मुद्दियए पहु खणु वि न ताण विणा जियए। सीहासणत्थ अत्थाणि जहिं सा राणियाउ सब्बाउ तहिं । सेवाण एंति पणमंति पया . जय परमेसरि महएवि सया।।.. भणिऊण घरहो जंतीउ वरे देप्पिणु एक्केक्कु दसद्ध सिरे। गच्छंति खलाउ सा वि सहइ देवग्गण अप्पउँ विग्गहइ । ५ सव्वण्हु महापहु परमपरा तिहुयणचितामणि पावहरा। पाविट्ठ दुट्ठ दुच्चारणिया हउँ चिरभवे कुच्छियकारिणिया । होती तुह पयपडिकूलमई तेणेउ मज्झ दिर्ण दिर्ण हवइ । बहु एवमाइवयणहिँ घणउ सुंदरमइ निंदइ अप्पणउ । दिवे दिवे झिज्जति निएवि सइ । पुच्छइ पयवइ वि न वज्जरइ। १० घत्ता-एवं गदवदि काले एक्कदिणम्मि निउ । जिणहरे तेत्थु पईसिवि पच्छन्नंगु थिउ ॥८॥ तावाइयउ रइकोच्छरउ नृवमाणियउ कयजसपसरे ढुक्काउ तहिं पुण्णासमहे अच्छेवि खणु जय देवि तुम कोवंकियए निव्वक्करए । पहणेवि गयउ तीए वि तया रुइराइयउ। नं अच्छरउ । रायाणियउ। सेवावसरे। बुद्धिमइ जहिं । पणवेवि तहे। सुविणोयघणु । भासेवि इमं । एक्के क्कियए। सिरि टक्करए। तहो दुम्मयउ । निय निंद कया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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