SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. ४. ४ ] , कहकोसु [ ३७ तेणुत्तउ कत्थइ होंतु पाउ एत्थच्छइ इहु बंभणु पिसाउ । सो सव्वगुणालउ चारुरूउ णं जाउ मरलु एत्तिउ विरूउ । नच्चेवउँ गाएवउँ वरिठ्ठ महु भावइ जइ तेणोवइछ । चउसु वि वेएसु सयंभु नाइँ सत्थत्थें सुयएवी विभाइ । तं गुणविणोयजणियाहिलासु खणु जणु वि न मेल्लइ तासु पासु । १० जहिँ गच्छइ तहिँ तहिँ समउ जाइ मोहणु गहिलेण विइप्णु नाइँ । तं सुणवि पहिउ पुहविनाहु गुणिवत्तए तूसइ किं न साहु । पेसिउ हक्कारिउ सो वि राउ आलोयवि लहु सयमेव आउ । अन्नोन्नु पलोइउ सायरेहिँ दोहिँ मि नं रविकमलायरेहिँ । गंभीरमहुरदुंदुहिरवेण उच्चारिउ आसीवाउ तेण । १५ घत्ता--मेइणि जाम ससायर चंददिवायर सुरगिरि सग्गि सुराहिवइ । ताम रज्जु रज्जेसर कुरु परमेसर होउ निरंतरु धम्मि मइ ॥२॥ हेला--प्रासीवाउ देवि नीसेससत्थपत्तं । पायडियं तिणा नियं निम्मलं बुहत्तं ।। पहयावरविउसत्तणमयाइँ , [दरिसाविय अच्छेरयसया।] विभिउ नरिंदु गुणरयणगेहु निच्छउ सामण्णु न होइ एहु । अहमिंदु चंदु खगवइ किमक्कु हरिहरु कमलासणु सुक्कु सक्कु । ५ सुरमति गहिल्लायारधारु अहवाउ पलोयहुँ पुहइ चारु । किं विस्सकम्मु सव्वंगजाणु किं सव्वसिद्ध भुवणप्पहाणु । अहवेहु सहसमुहु पन्नगेसु किं सरसई किउ पुरिसवेसु । अहवेहु जि पुच्छिज्जइ निरुत्तु किं अलियवियप्पहिँ चलइ चित्तु । इय चितिवि चितियपयसिवेण परिपुच्छिउ सो सइँ पत्थिवेण । १० को तुहुँ कहिँ होंतु किमत्थु प्राउ ___उवएसहि सुंदरमइ सहाउ । घत्ता--वयणु सुणेप्पिणु रायही वड्ढियरायहो कहइ स वइयरु विप्पवरु । अस्थि देसि कुरुजंगलि रिद्धिसमग्गलि नरवरिंद करिणायपुरु ॥३॥ हेला--तत्थ महाबलो बलो पत्थिवो पहाणो । सिवदत्तो पुरोहियो तासु सव्वजाणो ।। संजाउ पुत्तु तहो बंभणीण । सोमिल्ला कामु व रुप्पिणी । सु वि सुयणहँ नयणाणंदु देंतु वड्ढिउ नवयंदु व कलउ लेंतु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy