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________________ ३८ ] सिरिचंदविरइयउ सो हउँ निव नामें सोमयत्तु बुद्धिा गंथत्थहँ पारु पत्तु । ५ तहिँ तायपसाएँ सुहसया माणंतो बहुवरिसइँ गया। चितिउ मणि मइँ एक्कहिं दिणम्मि धी धी एहउ जीविउ जणम्मि । जं अज्ज वि जणणविढत्तु वित्तु बलि किउ विद्दवमि अलज्जचित्तु । सव्वो वि को वि तायो धणेण टिट्टिरि जणु करइ विढत्तएण । सभुयज्जिउ भुंजहिँ जे पवित्त ते विरला जणणि जणेइ पुत्त । १० इय लोयाहाणउ मग्गु जाउ लइ दूरुज्झमि आलस्सभाउ । उज्जमु करेवि कयलच्छिसोहु भुवणम्मि पयासमि नियगुणोहु । इय चितवि हउँ निग्गउ घराउ आयन्नवि परमगुणाणुराउ । नयधम्म अणोवमु चाउ भोउ तव कित्ति थुणंतु समग्गु लोउ । पुहईपिय दूरुज्झियसहाउ तेणेत्थु गुणंतरवेइ याउ । घत्ता--प्रावेप्पिणु नियमामहो गेहे सनामहो थियउ सुभूइहे तणइँ पहु। सो मइँ भणिउ सराएँ समउ सराएँ कारावहि दसणु दुलहु ॥४॥ हेला--पुणु पुणु पयत्तहो वुत्तु तो वि तेणं । ___ मज्झं तुमं न दाविप्रो देव गविएणं ॥ अहवा परकज्जे कासु कज्जु सव्वो वि जयम्मि सयज्जि सज्जु । परमेसर अहिमाणट्ठिएण तव दंसणसोक्खुक्कंठिएण । मइँ दुत्थियदुहसंदोहनास किउ गहिलवेसु विसमारितास । - ५ नाणाविणोयकीलावसेहिँ जणमणु मोहंतउ नवरसेहिँ । एत्थच्छमि नयरि नरिंदसीह करमाणु तुहारी दंसणीह । संपत्तु जम्मफलु मइँ मणोज्जु तं दिट्रो कह व जि अज्ज अज्जु । संसारविसमविसतरहलाई वेन्नि जि गुणिगणियइँ निम्मलाई । जं सुंदरकव्वरसाणुसाउ सहुँ सयणहिँ संगमु पहयताउ। १० सो अज्जु महामइ मझु जाउ जं दिलृ देव तुहुँ गुणनिहाउ । घत्ता--प्रउ सुणिवि नरिंदें परमाणंदें सहँ सहाण परमायरेण । संसेवियसाएँ परमपसाएँ परिपुच्छिउ परमायरेण ॥५॥ हेला–अणुवमगुणगणालो मुणेवि सव्वतोसो। अइसयमइमहल्लयो किउ महंतनो सो॥ हुउ सव्वदेसपरियणपहाणु अहवा को वारइ चिरविहाणु । राउ वि तेणुत्तउ करइ सव्वु नउ चित्तं तो वि तहो कि पि गब्बु । ५. १ संसेवियकसाएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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