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________________ संधि ४ धुवयं--सासयसुहवावणु कहमि पहावणु कह प्रायन्नह देवि मणु । भरहखेत्ति कुरुजंगलि जणवण निम्मलि करिपुरु अत्थि वियड्ढजणु ॥ हेला--तं पालए महाबलो कित्तिए वलक्खो । __बालसिरिपियाजुअो [गुणनिही] सुलक्खो । तहु रुद्ददत्तु लामिं पुरोहु सुहकम्मु व सव्वावइनिरोहु। ५ सोमिल्लहिँ हुउ बंभणिहिँ तासु सुउ सोमदत्त गुणगणनिवासु । एत्तहिँ पट्टणि अहिछत्तनामि दुम्मुहु नरिंदु नयणाहिरामि । दुम्मुहमहएविहे जणियकामु । तस्सत्थि पुरोहु सुभूइनामु । कासवि पिय नंदणु सोमभूइ सुय जन्नदत्त नं मयणदूइ । अब्भसियसव्वसत्थत्थवेउ नियबुद्धिविसेसपयासहेउ । सो एक्कहिँ वासरं करिपुराउ ससियत्तु सुभूइसमीवि आउ । सुहगोट्ठिए परिप्रोसियमणाइँ अच्छेवि तेण कइवयदिणा। विणएण पउत्तु जणेरिभाइ दक्खालहि सपहु गुणाणुराइ । गविउ मिच्छत्तरुई रिऊण थिउ तं सुभूइ अवहेरिऊण । . मामहो मुर्णवि असमंजसत्तु [तहो घरु मुएवि गउ सोमयत्तु ।] १५ धूलीधूसरिउ विवक्कवेसु ण्हाणक्खण जडसंजायकेसु । बहुभेय. गेयइँ गायमाणु पह चच्चरि घरि घरि णच्चमाणु । नीसल्लमल्लसंजणियसोहु' सच्छंदवारिजणजणियखोहु। घत्ता--नाणावेसविसेसहिँ लोयसहासहिँ परिवेढिउ विभउ करइ । कीलइँ नीसरियउ गणपरियरिउ गोरीपइपुरे संचरइ ॥१॥ हेला--नाणाभावधारओ विविहपत्तयड्ढो । रंगहिँ पइट्टो नं नडो वियड्ढो । पसरंततूरबंदिणनिणाउ एक्कहिँ दिणि बहि नीसरिउ राउ । पेच्छवि जणमेलावउ महंतु पासत्थु पुरिसु पत्थिवेण वुत्तु। कज्जेण केण दीसइ जणोहु जाइवि जोएवि मिलंतु मोहु। ५ १. १ निमल्लमल्ल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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