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________________ ३२ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३. २१. ८जं जं तेत्थुच्छिट्ठउ पावहिँ तं तं नेवि पुरे घल्लावहिँ । सुमरिवि पुव्ववेरु बोल्लइ बलि जाहु अज्जु कहिं देमि दिसावलि । भेसइ भेसावइ उवहासइ नमुइ न मुयइ सुनिठुरु भासइ। १० __घत्ता-जइ साहु सवंति तो करंति तेलोक्कखउ । पर एत्तिउ देउ जं कासु वि रूसंति नउ ॥२१।। २२ एत्थंतरि मिहिलानयरे अच्छंतेण जिणिदहरे। निसि नह थरहरंतु सवणु निवि अईवारत्ततणु । महपोमें गुरुणा सुणिउ नाणवियक्खणेण भणिउ । हा हा भो उवसग्गु बहु वट्टइ साहुहुँ दुव्विसहु । पुफ्फयंतअज्जेण तउ पुच्छिउ गुरु संदेहखउ । कहि केसं केमुवसमइ उवएसइ अणुकंपमइ। सह संघेण अकंपणहो गयउरि गणिहे अकंपणहो । दरिसियवग्घसीहमुहहाँ जो भूभूसणु गिरिगुहहो । विण्हुकुमारु मुणी वसइ तासु विउव्वणा ल्हसइ। तं निसुणेवि नवेवि गुरु गउ खेयरु तं गिरिविवरु । १० गंपि मुणिंदु नमंसियउ गुरुअाएसुवएसियउ । किं महु अस्थि विउव्वणिय रिद्धी जणमणरंजणिय । एम भणेवि परिक्ख किय वाह पसारिय तेण निय' । सेलभित्ति फाडेवि गय नं गंगानइ साइसय । लग्गा गंपि वि सायरहो कामिणि व्व रयणायरहो । जडसंगाप्रो अपहगइ खंचिय विउसेण व समइ । नं नियकित्तिदुवारु वरु पयडु जाउ जणचोज्जकरु । अज्ज वि अच्छइ तम्मि नए तित्थभूउ तं रंधु जए। घत्ता-हउ निण्णउ गपि विण्हकूमारे दिठ्ठ गुरु । सव्वासुहचत्तु नावइ सिद्धे सिद्धिपुरु ॥२२॥ २३ मग्गिउ दे पाएसु महापहु जाहि संघउवसग्गु निवारहि न करइ जो वच्छल्लु ससत्तिण कवण सुद्धि तो फुडु चारित्तत्र पइँ मुएवि दूरुज्झियदूसणु २२. १ णय। भणइ महामुणि कयधम्महँ वहु । भद्द सुकित्ति भुवणि वित्थारहि । सत्तहँ जिणमयसत्तहँ भत्तिए । नाणि तवम्मि सीले सम्मत्तए । अन्नहीं तं न समप्पण पेसणु। ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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