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३. २१. ७. ] कहकोसु
[ ३१ सो मज्झत्थु एहु फुडु एयहँ
भत्तउ राउ विमुक्कविवेयहँ । जइ जाणइ पुव्विलउ वइयरु
तो संपेसइ अम्हइँ जमहरु । भेसइणा पउत्तु तहिँ गम्मइ
नाउ वि एयहँ जत्थ न सुम्मइ । नमुइ भणइ धीरत्तु न मुच्चइ
करउ दई जं कि पि वि रुच्चइ । घत्ता–पल्हाएँ वुत्तु जाव न पडिवक्खा फलउ ।।
किउ ताव कि होइ जीवियव्वसुहसोहलउ ॥१९॥
१५
तं पर हवइ रज्जसंपत्तिण
दरिसियदुट्ठाणिट्ठपवित्ति। एउ वयणु सव्वहिँ मि समत्थिउ
बलिणा गंपि राउ अब्भत्थिउ । जो पइँ आसि अमोहपयंपिय
वरु पडिवन्नु मज्झु पुहईपिय । सोज्जि पसाउ करेप्पिणु दिज्जउ
नियपइज्जनिव्वाहउ किज्जउ । तं निसुणेवि नरिंदें वुच्चइ
मग्गि मित्त जं कि पि वि रुच्चइ। ५ ता विप्पेण भणिउ मुणि वासर
रज्जु पयच्छहि कुरुपरमेसर । तुहुँ चितवियमणोरहपूरउ
तुहुँ मइवरु सूराहँ वि सूरउ । पइँ अवहत्थिउ महु मणसल्लउ
जं दिज्जइ तं तुह परिभल्लउ । एम भणेवि जणियनिव्वाहें
दिन्नु रज्जु तो करिपुरनाहें । मुवि तत्ति परिवारहो देसहो
निवइ पइठ्ठ मज्झ रणिवासहो । १० एत्तहे परिवड्ढियमुहरायो
भमिय आण मंडले बलिरायो । जन्नविहाणमिसेण वियंभिउ
घोरुवसग्गु तेहिँ पारंभिउ । वेढिवि सवणसंघु नेरंतर
किउ मंडलु संछन्नदियंतरु । खणिय कुंड हुयवह पज्जालिवि
साहु सुद्धधूमेण करालिय । घत्ता-उवसग्गु निएवि समसहाव दुविहाणसणे ।
थिय तउ उवसग्गसहणु एउ चितेवि मणे ॥२०॥
जं. मग्गिज्जइ तं तं लब्भइ । पिज्जइ सोमपाणु पलु खज्जइ ।
मंडवि मग्गणेहिँ महि खुब्भइ हुयवहि जीवनिवहु होमिज्जइ देवयपियरुद्देसें दिज्जइँ मारिवि जीव मुग्रंति सरुंडइँ रत्तेणुत्तिड्डति विरुद्धा एव भणंति हणंति सुबद्धहिँ गलि घिवंति पसु अंतावलियउ २१. १ जे ।
५
ते हयास ताण गए मुंडइँ । चंगउ जं सयल वि उवलद्धा। वार वार सीसम्मि दसद्धहिं । नाइँ भुयंगमीउ चलचलियउ ।
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