SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. २५. ५ ], कहकोसु पभणइ विण्हुमुणी णयमत्थउ हउँ परेक्कु भुवणम्मि कयत्थउ । जासु तुम्हे कयअवरविहत्तिय करह नाह संभावण एत्तिय । एम भणेप्पिणु पणवेप्पिणु गुरु विण्हुकुमारु झत्ति गउ गयउरु । गंपि सहोयरु जेठ्ठ पउत्तउ कि उवसग्गु मुणीणाढत्तउ । एरिसु कम्मु एत्थ संताण किउ केणावि न भुवणपहाण। १० जामज्ज वि सकुडुबु न नासहि पावें कुंभीपाण पईसहि । ताव तुरंतु निवारहि बंभण पावयम्म रिसिसुंघनिसुंभण । पत्ता-विनविउ नवेवि पोमनरिंदें साहुवरु । किं कीरइ भाय दिन्नु ताहँ मइँ रज्जु वरु ॥२३॥ २४ तं पर बोल्लिज्जइ जं किज्जइ चलवयणेण लोइ लज्जिज्जइ । जामावहि न पूरवइ दाणहो ताव न नेमि दुव अवसाणहो । उक्तं च-सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति साधवः । ___ सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्री ण्येतानि सकृच्छकृत् ।। विगयलज्ज जज्जाहि अयाणउ तुहुँ वि तेहिँ विप्पेहिँ समाणउ। ५ एव भणेवि विहियउवसोहहो निग्गउ रिसि वासें निवगेहहो । वावणवेसु करेवि पइट्ठउ जन्नसाल बलिराएँ दिट्ठउ । कयपच्छणु पउत्तु जं रुच्चइ मग्गि भट्ट ता तेण पउच्चइ । कज्जु न कि पि राय महु अन्नहिँ हयगयरहधणधन्नसुवन्नहिँ । पणयवारकर एत्तिउ किज्जउ महु मढियत्थु तिपय महि दिज्जउ । १० भणिउ असासयरज्जे दियवरु मग्गहि अवरु किं पि जं बहु वरु । मायावावणेण बोल्लिज्जइ कज्जु जेण तं पर मग्गिज्जइ । पाणियम्मि पाणियलि निहित्तए पावियम्मि पुहई पायत्तए । ता वंचणवेसें भूदेवें वेउव्विउ सरीरु संखेवें । घत्ता-महियलु गयणंतु जाम ताम पवियंभिउ । तिहुयणघरखंभु नाइँ विहाएँ उब्भिउ ।।२४।। २५ एक्कु पाउ देवसेलसीसे साहु संमिग्रो । बीउ माणुसोत्तरम्मि तेण संनिवेसिप्रो । तइयऊ अपावमाणु ठाणु खे परिट्ठिो । नाइँ ताण दुज्जणाण घूमकेउ उट्ठियो॥ नं मुणिंदविंद-विग्धवारि-रासिपोयो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy