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सिरिचंदविरइयउ
[ ३. १३. १
एत्तिउ जणवउ हरिसुप्पेल्लिउ
कहिं अयालजत्तह संचल्लिउ । भणइ मंति कुललज्जविवज्जिय
नग्ग सवण उज्जाणि अपुज्जिय । थिय आवेप्पिणु जो तह भत्तउ
सो जणु जाइ एह मइचत्तउ । भणिउ नरिदि मइँ वि निरुत्तउ
गंपि सुणेवउ ताण पउत्तउ । मंतें वुत्तु ताहँ को भासिउ
सुणइ सुईसत्थहिँ संदूसिउ । ५ जइ सवणत्थु धम्मु तो पहु सुणु
धम्ममूलु वेएहिँ महागुणु । जं वेएण वुत्तु तं किज्जइ
अण्णु सव्वु दूरेण चइज्जइ । भासिउ नरवरेण वेयत्तउ
निसुणिउ मइँ वाराउ बहुत्तउ । संपइ सवणधम्मवहु केहउ
सुणहुँ गंपि तहिँ नीसंदेहउ । जाणेविण सामिहिँ गमणागहु
भासइ सुत्तकंठु मलसंगहु । १० जइ जाएसहुँ तेत्थु निरुत्तउ
तो एत्तिउ किज्जउ महु वुत्तउ । घत्ता-मज्झत्थे नाह अच्छेवउ मोणेण पइँ । जे णिउणवयणाइँ ते वाएँ कायव्व मइँ ।।१३।।
१४ एम होउ भणिऊण नराहिउ
गउ तहिँ जहिँ ससंघु संघाहिउ । पय पणवेप्पिणु पुरउ निसन्नउ
आसीवाउ न केण वि दिन्नउ । ता दिएहिँ भासिउ भो रिसयहाँ
तुम्हारासमें सामिउ विसयो । आगउ आसमगुरु संभासह
नियसमयाओ धम्मु पयासह । तो वि न किंपि को वि तहिँ बोल्लइ गुरुसंकेयवयणु मणि सल्लइ । नियवि निरुत्तर कयउवहासहिँ
भासिउ चउहिँ मि तेहिँ हयासहिँ । सामिय ए पसु असुइ अमंगल
एयहँ वयणरयण कहिँ मंगल । रायसहाए किमुत्तर देसहुँ
सहुँ विउसयणहिं काइँ चवेसहुँ । एण भएण मुक्ख थिय झाणे
जणमणरंजणमायामोणे । निसुणिवि ताणं वयणु विरूयउ
राउ वि किं पि विलक्खीहूयउ। १० सहसुटेप्पिणु जणमणरमणहो
चल्लिउ सहुँ सेणा सभवणहो । घत्ता-गोउरहो समीव सो सुयसायरु साहु तउ । आलोपवि एंतु पुणु वि तेहिँ उवहासु कउ ॥१४॥
१५ पेक्खु पेक्खु पहु खाणवि एतउ . अवरु बइल्लु कहिं पि वि होतउ । निंदावयणु सुणेवि मुणिदें
चितिउ परवाइब्भमइंदे । निच्छउ वंदणहत्तिण राणउ
गउ होतउ जहिँ संघपहाणउ ।
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