SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ ] सिरिचंदविरइयउ [ ३. १३. १ एत्तिउ जणवउ हरिसुप्पेल्लिउ कहिं अयालजत्तह संचल्लिउ । भणइ मंति कुललज्जविवज्जिय नग्ग सवण उज्जाणि अपुज्जिय । थिय आवेप्पिणु जो तह भत्तउ सो जणु जाइ एह मइचत्तउ । भणिउ नरिदि मइँ वि निरुत्तउ गंपि सुणेवउ ताण पउत्तउ । मंतें वुत्तु ताहँ को भासिउ सुणइ सुईसत्थहिँ संदूसिउ । ५ जइ सवणत्थु धम्मु तो पहु सुणु धम्ममूलु वेएहिँ महागुणु । जं वेएण वुत्तु तं किज्जइ अण्णु सव्वु दूरेण चइज्जइ । भासिउ नरवरेण वेयत्तउ निसुणिउ मइँ वाराउ बहुत्तउ । संपइ सवणधम्मवहु केहउ सुणहुँ गंपि तहिँ नीसंदेहउ । जाणेविण सामिहिँ गमणागहु भासइ सुत्तकंठु मलसंगहु । १० जइ जाएसहुँ तेत्थु निरुत्तउ तो एत्तिउ किज्जउ महु वुत्तउ । घत्ता-मज्झत्थे नाह अच्छेवउ मोणेण पइँ । जे णिउणवयणाइँ ते वाएँ कायव्व मइँ ।।१३।। १४ एम होउ भणिऊण नराहिउ गउ तहिँ जहिँ ससंघु संघाहिउ । पय पणवेप्पिणु पुरउ निसन्नउ आसीवाउ न केण वि दिन्नउ । ता दिएहिँ भासिउ भो रिसयहाँ तुम्हारासमें सामिउ विसयो । आगउ आसमगुरु संभासह नियसमयाओ धम्मु पयासह । तो वि न किंपि को वि तहिँ बोल्लइ गुरुसंकेयवयणु मणि सल्लइ । नियवि निरुत्तर कयउवहासहिँ भासिउ चउहिँ मि तेहिँ हयासहिँ । सामिय ए पसु असुइ अमंगल एयहँ वयणरयण कहिँ मंगल । रायसहाए किमुत्तर देसहुँ सहुँ विउसयणहिं काइँ चवेसहुँ । एण भएण मुक्ख थिय झाणे जणमणरंजणमायामोणे । निसुणिवि ताणं वयणु विरूयउ राउ वि किं पि विलक्खीहूयउ। १० सहसुटेप्पिणु जणमणरमणहो चल्लिउ सहुँ सेणा सभवणहो । घत्ता-गोउरहो समीव सो सुयसायरु साहु तउ । आलोपवि एंतु पुणु वि तेहिँ उवहासु कउ ॥१४॥ १५ पेक्खु पेक्खु पहु खाणवि एतउ . अवरु बइल्लु कहिं पि वि होतउ । निंदावयणु सुणेवि मुणिदें चितिउ परवाइब्भमइंदे । निच्छउ वंदणहत्तिण राणउ गउ होतउ जहिँ संघपहाणउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy