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________________ ३. १२ १४. ], कहकोसु [ २७ तत्थ नवेप्पिणु वीरजिणिदही वे वि बइठ्ठ मज्झि मुणि विंदहो । धम्माहम्सु सुहासुहसंगमु अायण्णेविणु तउ कउ निग्गमु । जंतहँ ताहँ लयाहरमंडवि गायउ केण वि सुरयणतंडवि । ५ तं जहा–मइल कुचेली दुम्मणा नाहें पव्वसिएण । किम जीवेसइ धणिय धर डझंती विरहेण ।। सुणिवि एउ दियमुणि मणि सल्लिउ पियह पासु नियगामो चल्लिउ । चलमणु परियाणेप्पिणु धुत्ते निउ नियनयरहो भोलिवि मित्तें । पुत्तु समित्तु एंतु पेक्खेप्पिणु सहसा अब्भुट्ठाणु करेप्पिणु। १० नविवि परिक्खाहेउ रवन्नइँ चेल्लणाण पासणइँ विइण्णइँ । नीरायासणम्मि वइसेप्पिणु नियअंतेउर कोक्कावेप्पिणु । लइ लइ एयउ मित्त सरज्जउ भणिउ वारिसेणेण मणोज्जउ । किं भणु एक्क ताण निहीण बंभणीण दोगच्चे खीण। तं निसुणेवि सुठ्ठ सो लज्जिउ दिढ़मणु दुप्परिणामविवज्जिउ । १५ तहो दिवसहो लग्गिवि संजायउ गुरुपालोयणतित्थें ण्हायउ ।। घत्ता–अवरेण वि एव चलचित्तहो दुक्कियहरणु । कायव्वु अवस्स पउरपउत्तिहिं ठिदिकरणु ।।११।। भणिदं च दसणचरणुवभढे जीवे दळूण धम्मबुद्धीए । हिदमिदमवगूहिय ते खिप्पं तत्तो णियत्तेज्जा ॥ [भ. पा. २६२] प्रायण्णह वच्छल्लकहाणउ सिरि सिरिधम्मुज्जेणिहं राणउ । मंति चयारि तासु बलिपाइय बंभण दुप्परिणामविराइय । एक्कहिँ वासरि तत्थाकंपणु आउ महारिसि धम्मु व अप्पणु । सत्तहिँ रिसिसएहिँ परियरियउ गंपि असोयवणे अवयरियउ । तत्थ निमित्तु किं पि अवधारिवि वारिउ संघु तेण हक्कारिवि । कयदिढमोणुववासउ अच्छउ अज्जु कहिँ पि को वि मा गच्छउ । होसइ थोरुवसग्गु मुणेप्पिणु किउ सव्वहिँ गुरुवयणु नवेप्पिणु। १० एक्कु चेय पर पच्छा एंतउ दीहरमग्गसमेणाकंतउ । मुणि सुयसायरु गुरुउवइट्ठउ अमुणिवि पुरु चरियार पइट्ठउ । घत्ता-एत्तहे सउहयले सुहुँ अच्छंते नाइँ कलि । __ जणु जंतु निएवि पुच्छिउ सिरिधम्मेण बलि ॥१२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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