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१३. मुनि द्वारा वसन्ततिलका का पूर्व जन्म में बाप व इस जन्म में माता होने का ___ वृत्तान्त । उज्जैनी के सोमशर्मा और काश्यपी पति-पत्नी । अग्निभूति और
सोमभूति पुत्रों सहित दो मुनियों का दर्शन । आर्यिकानों के प्रणाम पर उपहास । १४. सोमशर्मा का वसंतसेना की पुत्री वसंततिलका के रूप में पुनजन्म व दोनों पुत्रों
का उसके युगल पुत्र-पुत्री के रूप में जन्म । पूर्ववत् वृत्तान्त । धनदेव से वसन्त
तिलका को पुत्र जन्म । १५. कमला का क्षुल्लिका-व्रत-ग्रहण व उज्जैनी गमन । वसन्ततिलका के पुत्र का पति
भ्राता, भ्रातृ-पुत्र, सौत पुत्र व भ्राता कहकर संबोधन । वसंतसेना ने सुनकर
मर्म पूछा। १६. कमला द्वारा वृत्तान्त कथन । सुनकर वसन्ततिलका का जाति-स्मरण व प्रात्मनिन्दा और धनदेव सहित तप-ग्रहण ।
संधि-५२ कडवक १. कर्मफल की प्रबलता पर सुभोग नृप कथा-विदेह देश, मिथिला नगर, सुभोग
नृप, मनोरमा रानी, देवरति पुत्र, मुनि आगमन । लोक-वन्दना । मिथिलेश के आगामी भव का प्रश्न व उत्तर । आज से सातवें दिन प्राघात से मरण और घर
के पीछे काले सिर-कीट के रूप में पुनर्जन्म । २. तथा आज पुरःप्रवेश के समय मुख में मलपात व श्वान दर्शन तथा घोड़ी के
किशोर का जन्म होगा । राजा का मुनि-वचन में अविश्वास । यथादिष्ट घटनायें । पुत्र को कीटक का जन्म होने पर मार डालने का आदेश । भयपूर्वक जलगृह में प्रवेश । सातवें दिन अशनिपात से मरण व कीटोत्पत्ति । पुत्र द्वारा . मारने का प्रयत्न करने पर बिल-प्रवेश । जीव जिस गति में जाता है, उसी में रति करने लगता है । यह विचार कर देव
रति का वैराग्य । संसार के झूठे नातों पर सुकौशल स्वामी के चरित्र का संकेत । ४. नातों के विपरिवर्तन पर सुदृष्टि अलसकुमार कथा-उज्जैनी, प्रजापाल नृप,
सुदृष्टि सुनार । विमला पत्नी का शिष्य से कुत्सित संबंध । पति द्वारा निन्दा । पत्नी का रोष । शयन के समय वक्र नामक शिष्य द्वारा वध । पति द्रोहिणी पत्नी के गर्भ में वास । जन्म । अलसकुमार द्वारा हार की सम्हाल । राजा के पूछने पर अपने पूर्वजन्म का वृत्तान्त । सुनकर राजा का वैराग्य । अलसकुमार की प्रव्रज्या । शौरीपुर बिहार । उत्तर दिशा में यमुना तट
पर निर्वाण । जाति-विपरिवर्तन पर अग्निभूति-मरूभूति कथा की सूचना। ६. प्रतभंग पर धर्मसिंह मुनि की कथा-कौशलपुर, धर्मसिंह राजा दक्षिणदेश,
कोल्लगिरि, वीरसेन राजा, चन्द्र राजपुत्र व चन्द्रश्री राजकन्या । धर्मसिंह से
विवाह । धर्मश्रवण व दमवर मुनि से दीक्षा । चन्द्रश्री की वियोग-पीड़ा। ७. चन्द्रश्री की अवस्था देखकर उससे पिता द्वारा धर्मसेन को तप छुड़ाकर, पुनः गृह
में प्रानयन । पुनः दीक्षा, पुनः प्रानयन, अनेक बार । अन्तिम बार मुनि का घर
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