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से पलायन व चंड का अनुधाबन । मुनि का मृत हस्ती के शरीर में प्रवेश व
रत्नत्रय स्मरण सहित स्वर्गवाश । ८. व्रतभंग पर ऋषभसेन मुनि कथा-कुसुमपुर, ऋषभदत्त वणीन्द्र ऋषभसेन पुत्र,
धनपति वणिक् की पुत्री धनश्री के विवाह । तप-ग्रहण । धनश्री का दुःख । पिता
द्वारा बलपूर्वक मुनि का गृह में पानयन । ६. ऋषभसेन की पुन: प्रव्रज्या, पुनः प्रानयन, बारंबार । पालोचना पूर्वक श्वास
निरोध द्वारा मरण । स्वर्गवास । १०. प्रात्मघात द्वारा संघ रक्षा पर जयसेन नप कथा-श्रावस्तीपुर, जयसेन राजा,
बौद्ध राजगुरु बुद्धसेन । मुनि प्रागमन, राजा का धर्म-श्रवण व श्रावक होना। बुद्धसेन का कोप व राजा के वध का उपाय । पृथ्वीपुर के बौद्ध राजा सुमति का बौद्धधर्म पुन: ग्रहण का सन्देश । जयसेन का अस्वीकर । सुमति का रोष । सहस्र भटों के नायक प्रचल का प्रेषण । ब्राह्मण वेष में पुर-निवास व राजा के वध का उपाय-चिन्तन । अभिसार नामक भट
द्वारा वध का भार-ग्रहण । उपासक वेष ग्रहण व मुनि से तपश्चरण की याचना । १२. तप-ग्रहण । राजा का प्रागमन । मुनि से एकान्त में वार्ता। अभिसार द्वारा
छिपकर राजा का वध व पलायन । मुनिसंघ के नायक की चिन्ता । १३ यह कुकर्म हमने नहीं, अभिमार ने किया, किन्तु उपद्रव निवारण हेतु मैं अपने
प्राण प्रर्पण करता हूं, ऐसा भित्ति पर रुधिर से लिखकर पुरी से उदर-विदारण द्वारा प्राणत्याग व स्वर्गवास । कुमार का क्षोभ । उक्त वाक्य पढ़कर उपशमन, सूरि चरित्र का अभिनन्दन व प्रात्म निन्दा ।
संधि-५३ कडवक १. शस्त्र विधि से मरण कर स्वर्गवास पर शकटाल मुनि कथा-वत्स देश, कौशाम्बी
पुरी, सुभूति ब्राह्मण, कपिला ब्राह्मणी, अप्पर और उवप्पर नामक दो पुत्र। २. ज्येष्ठ पुत्र मूर्ख, कनिष्ठ वेद-वेदांग ज्ञाता । ज्येष्ठ पत्नी सुमित्रा, कनिष्ठ-पत्नी
सुप्रभा । सुप्रभा द्वारा मूर्खव्रत ग्रहण व उद्यमन । अमावस के दिन ज्येष्ठ को अतिमूर्ख समझ काला बैल, काले वस्त्राभूषण आदि वस्तुमों का दान । गृहागमन व पत्नी की भर्त्सना। खिन्न मन से वनगमन । देवता की वन्दना । पांडित्य का
वरदान । गृहागमन । ३. प्रध्यापक पद प्राप्ति । प्रसिद्धि । समीपवर्ती ग्राम में नररुचि, नमुचि, बृहस्पति
मौर इन्द्रदत्त का भागमन व अप्पर गुरु से अध्ययन । विद्यापारगामी होकर
सहस्रं गौमों की गुरुदक्षिणा हेतु कुसुमपुर के राजा नन्द के समीप गमन। ४ उसी समय नन्द की मृत्यु । नमुचि का नन्द के शरीर में प्रवेश । राज्यपद ।
गुरुदक्षिणा प्रेषित । स्वयं शिष्यों के न पाने से गुरु का रोष चारों को शाप । नमुचि को मद्य से विटलकर कुलहीनता, वररुचि को अशुभ, बृहस्पति को तनुशोष व इन्द्रदत्त को महाग्रहदोष का।
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