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________________ ( ११० ) ६. मुनि-दीक्षा । पाहार की प्राप्ति अथवा वमन । सौतेली माता द्वारा प्रौषधि उपचार से रोग-निवारण । शौरीपुर आगमन व यमुनातट निवास । यमुनावक राजा का शिकार को गमन व मुनि दर्शन का अपशकुन मानकर बाण-वेधन । वेदना सहकर मुनि का मोक्ष । उस स्थान पर अब भी सिद्धक्षेत्र रूप तीर्थ । परीषह सहन पर अभिनन्दनादि पाँच सौ मुनियों की कथा । दक्षिण देश, कुंभकारक पट्टन, दंडक राजा, सुव्रता रानी, पालक मंत्री । अभिनन्दनादि पांच सौ मनियों का आगमन । एक मनि द्वारा वाद में मंत्री का पराजय । मंत्री ने रानी के सम्बन्ध से राजा को रुष्ट कर समस्त मुनियों को यंत्र में पिलवाया। समाधि से मरकर मुनियों का स्वर्गवास तथा मंत्री और राजा का नरकवास । ११. परीषह सहन पर चाणक्य मुनि कथा । कुसुमपुर, नन्दराजा, सुव्रता रानी, कावि, सुबंधु, शकटाल और कपिलसुत चाणक्य मंत्री । सीमावर्ती राजानों का क्षोभ । कावि मंत्री द्वारा एक लाख सुवर्ण के वार्षिक दान पर संधि । राजकोष का क्षय । ५०८ १२. राजा द्वारा काविमंत्री का सकुटुम्ब अंधकूप में क्षेपण व एक शराव अन्न का प्रतिदिन दान । केवल कावि द्वारा प्रतिशोधनिमित्त भक्षण व जीवनधारण । विशेष ज्ञानी मंत्री से रहित जान राज्य पर दस्यु दल का अाक्रमण । १३. मनाकर कावि का कूप से उद्धार । वरदान । दर्भमूल खोदते हुए चाणक्य से भेंट। ५०६ १४. चाणक्य को पैर में चभने वाले दर्शों को निर्मूल नष्ट करने में दृढ़-संकल्प देख, उसके द्वारा नन्दराजा के कुलक्षय की संभावना से कावि की मैत्री । परीक्षा निमंत्रण । रात्रि में सहस्र द्रम्म का दान । १५, कावि का नन्द को इन्द्रपद प्राप्ति हेतु एक लाख गौत्रों के दान का उपदेश । ब्राह्मणों का सम्मेलन । चाणक्य का प्रधानासन ग्रहण व उपकरणों से अन्य प्रासनों का अवरोधन । राजा द्वारा प्रासन से च्युत कराया जाना। रोष । निष्कासन । नन्दवंश के उच्छेद की प्रतिज्ञा । चन्द्रगुप्त से मेल । जलधि मध्य निवास । वनराज सिंह को सूचना व प्रानयन । मंत्रणा, भट संचय व नन्द के किंकरों का भेद । १७. नन्द का वध व चन्द्रगुप्त का अभिषेक । चाणक्य मंत्री । मतिवर मुनि से दीक्षा । संघाधिपतित्व । पांच सौ शिष्यों सहित दक्षिण देश में वनवास गमन । क्रौंचपुर के पश्चिम में निवास । राजा व सुमित्र की वन्दना । १८. नन्द का मंत्री सुबंधु भी राजा के साथ । चाणक्य को देख द्वेष । मारने का निश्चय । प्रत्यागमन । संध्या को सब ऋषियों को करीष से पूर कर अग्नि प्रज्वालन । समाधिपूर्वक मरण । भाज भी वहां निषद्या की पूजा । परीषह सहन पर ऋषभसेन मुनि कथा-दक्षिणापथ, प्रांध्रदेश, कुणालपट्टन, वैश्रवण राजा, ऋद्धिमिथ्यात्व मंत्री । ऋषभसेन मुनि का आगमन । राजा की वन्दना । मंत्री द्वारा द्वेष से वाद । मुनि द्वारा पराजय । रात्रि में वसही का अग्निदाह । मुनियों का स्वर्गवास । ५१२ ५ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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