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( १०८ ) मेरुगिरि गमन व विद्युदंष्ट्र का वध । विद्युदंष्ट्र नगर से निकलकर तोणिमंत पर्वत पर व्याघ्र हुआ। सर्प मरकर कुरुवंशी विजयदत्त नरेश का पुत्र
गुरुदत्त हुआ। १३. राजा की दीक्षा, गजकुमार का राज्य । लाटदेश के तोणिमंत पर्वत की पूर्वोत्तर
चन्द्रपुरी का राजा यादववंशी चन्द्रकीर्ति, रानी चन्द्रलेखा, सात पुत्रियाँ । सर्व
लघु अभयमती। उसके निमित्त गुरुदत्त का अाक्रमण । १४. भीषण युद्ध । चक्र से छिन्न एक सामन्त का हस्त पक्षी द्वारा अपहृत व प्रासाद
पर अभयमती राज्यकन्या के समक्ष पतित । धात्री द्वारा उसी के निमित्त घोर संग्राम की सूचना। अभयमती का पिता को सन्देश कि उसके के निमित्त यह भट-संहार करना उचित नहीं। गुरुदत्त से विवाह । तोणिमंत पर्वत पर व्याघ्र के उपद्रवों की सूचना । गुरुदत्त द्वारा व्याघ्र को घेरना । जनसमूह को देख व्याघ्र का गुफा प्रवेश । तृण काष्ठ एकत्र कर अग्नि द्वारा व्याघ्र का नाश । विश्वदेवद्विज के पुत्र कपिल के रूप में व्याघ्र का पुनर्जन्म । गुरुदत्त का स्वनगर गमन । सुवर्णभद्र पुत्र की उत्पत्ति । अमृतासव मुनि का आगमन । राजा का वन्दनार्थ गमन । धर्मोपदेश व पूर्वजन्म कथन-उपरिचर, सर्प, नागकुमार और गुरुदत्त ।। अभयमती के पूर्वजन्म । चन्द्रपुरी के प्रधान पारधी गड़वेग की पत्नी गोमती । हिंसा व मधु-मांस त्याग का व्रत । पति का तीतरी पकड़कर लाना, पत्नी द्वारा मोचन । पति का रोष । पत्नी का निदान पूर्वक वापी में डूबकर आत्मघात ।
चन्द्रलेखा रानी की पुत्री अभयमती के रूप में पुनर्जन्म । १८. अभयमती और गुरुदत्त की दीक्षा । मुनि का चन्द्रपुरी आगमन व कपिल के खेत
के समीप निवास । कपिल का मुनि को खेत सम्बन्धी सन्देश । मुनि की उपेक्षा। भोजन लेकर पायी पत्नी के प्रश्न पर मौन । पत्नी का वापिस जाना। कपिल
का घर आकर रोष। १९. मुनि द्वारा पता न देने पर कपिल का मुनि के शरीर व सिर पर अग्निदाह ।
मुनि को वेदना सहकर कैवल्य प्राप्ति । कपिल का पूर्वभव सुनकर तप-ग्रहण । कोंकण देश के वन में अग्नि से दाह व अच्युत स्वर्गवास । आग लगाने वाले तुंगभट का पश्चात्ताप व अग्नि प्रवेश, देव व श्वेतहस्ती का जन्म । अच्युत देव
द्वारा संबोधन, पूर्वभव स्मरण, दावानल में दहन । २१. राजगह में श्रेणिकराजा की पत्नी धनश्री के गर्भ में अवतरण । नाग का स्वप्न ।
गजपर बैठकर वनक्रीड़ार्थ गमन का दोहला। अभयकुमार द्वारा दोहला पूर्ति ।
पुत्र गजकुमार की उत्पत्ति । यौवन । धर्मसेवन । २२. महावीर तीर्थंकर का आगमन । धर्मश्रवण व कुमार का दीक्षा ग्रहण । कलिंग
देश में दन्तीपुर गमन । भव्यों का वन्दन । बुद्धदास मंत्री द्वारा राजा को द्वेषपूर्ण सूचना।
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