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________________ २. ३. ४. ( १०७ ) आरक्षक द्वारा खोज । विद्युच्चर का बंधन । किन्तु उसका अपने को निरप राध बतलाना । आरक्षक द्वारा घर ले जाकर नाना प्रकार से दंडित तथापि चोर का अपने को निरपराध ही घोषित करना । राजा द्वारा अभयदान दिये जाने पर अपराध स्वीकृत | यमदंड की बत्तीस यातनाओं का सहने का कारण | पूछे जाने पर चोर ने कहा, वे मुनि के वचनानुसार नरक की यातनाओं से हीन हैं । राजा द्वारा एक वरदान | चोर द्वारा अपने मित्र तलवर के अपराध की क्षमा याचना । तलवर मित्र कैसे हुआ ? उत्तर । श्राभीरदेश में वेन्नातट नगर । ५. राजा जितशत्रु, रानी जिनमती । उन्हीं का पुत्र मैं विद्युच्चर । वहीं यमपाश तलवर का पुत्र यही यमदंड मेरा मित्र । साथ अध्ययन - मेरा विषय चौरशास्त्र, यमदंड का तलवर शास्त्र । परस्पर एक दूसरे के समीप रहने की प्रतिज्ञा । राजा की मृत्यु । ६. मैं राजा और यह कोटपाल । चोर और रक्षक के कर्तव्य में वैषम्य देख यमदंड का इधर आगमन । मेरा भी इसकी खोज में यहां भागमन व इसकी बुद्धि की परीक्षा । चोरी के धन की वापिसी । भगिनीपुत्र जानकर राजकन्या महालक्ष्मी से विवाह का प्रस्ताव । विद्युच्चर की अस्वीकृति । ७. विद्युच्चर की राजधानी से राजपुरुष का श्रागमन । वापिस चलने का प्रस्ताव । वामरथ नरेश की श्राज्ञा व कोटपाल को लेकर स्वनगर श्रागमन । पुत्र को राज्य दान । दीक्षा ग्रहण । विहार । ताम्रलिप्ति श्रागमन । ८. दुर्गादेवी द्वारा दुर्गोत्सव के समय संघ के पुर प्रवेश का निवारण । उपेक्षा । पुर प्रवेश । निशाचर भूत योगिनियों श्रादि द्वारा घोर उपसर्ग । दंशमशकों द्वारा शरीर भक्षण । अन्य मुनियों का पलायन । विद्युच्चर का परीषह सहन व मोक्ष | ६. परीषह सहन पर गजकुमार कथा । भरतक्षेत्र, श्रावस्तीपुर इक्ष्वाकुवंशी उपरिचर नरेश । पद्मावती रानी, अनन्तवीर्यादि पांच सौ पुत्र । वसंतोत्सव, उद्यान गमन । रानियों सहित जलक्रीड़ा । १०. विद्युद्दष्ट्र खेचर का श्रागमन । विद्याधरी द्वारा राजा की प्रशंसा । खेचर की ईर्ष्या । विद्याधरी को घर पहुँचाकर पुनरागमन तथा बड़ी शिला से वापी का कंपन । राजा मरकर सर्प हुआ । रानियों का स्वर्गवास । उसी वन में सारस्वत साधु का श्रागमन । ११. अनन्तवीर नरेश की साधुवन्दना व पिता के कथन । पुत्र का मुनिवचनानुसार सर्प को जाति-स्मरण | सम्बन्ध में प्रश्न । गुरु का यथार्थ संबोधन, मुनि समीप श्रागमन, १२. अल्पायु जान सर्प का सन्यास ग्रहण । नागकुमार के रूप में पुनर्जन्म व भाकर मुनि-वन्दन । अनन्तवीर्यं का तपग्रहण व मोक्ष | नागकुमार का वन्दनार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only ४६३ ४६३ ४६४ ४६४ ૪૨ ४६५ ४६५ ४६६ ४६६ ४६७ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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