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________________ ४८८ ४८६ ४८६ १७. ४६० आतापन योग। भिक्षार्थ नगर में जाने पर बुद्धदास वणिक द्वारा प्रासन शिला को तपाना। मुनि का उस पर बैठकर ध्यान, कैवल्य-प्राप्ति और मोक्ष । १५. परीषह सहन पर अग्निपुत्र कथा। कार्तिकपुर । राजा अग्नि । वीरमती रानी। बंधुमती आदि छह पुत्रियां । छहों का नंदीश्वर उपवास । माशीर्वाद लेने पिता के सम्मुख गमन । राजा की कनिष्ठ-पुत्री कृत्तिका पर आसक्ति । १६. राजा का मंत्री-सामन्तों से प्रश्नोत्तर और कृत्तिका से विवाह । गर्भ । दोहला। पुत्र जन्म । नाम कार्तिकेय । दूसरी सन्तान पुत्री वीरश्री । रोहतक के राजा क्रौंच से विवाह। कुमार की प्रायु चौदह वर्ष । वसन्तोत्सव में कुमारों के मातामहों के उपहार । कार्तिकेय का अपने मातामह के सम्बन्ध में माता से प्रश्न । पिता ही मातामह भी है, जानकर लज्जा । निर्गमन । क्रौंच गिरि पर योग-साधन । वृष्टि से शरीर के मल का प्रक्षालन । द्रह निर्माण, जिसमें स्नान से व्याधि-शान्ति की मान्यता। पत्र वियोग के शोक में कृत्तिका की मृत्यू । श्री पर्वत पर व्यन्तरी का जन्म । व्यन्तरी द्वारा कार्तिकेय की रक्षा । रोहतक प्रागमन । भगिनी द्वारा पहिचान व आहारदान । राजा से किसी की शिकायत । राजा का प्रहार व मुनि की मूर्छा। व्यन्तरी का पाकर मूच्छित पुत्र का दर्शन । व्यन्तरी का रुदन । मुनि की चेतना तथा माता को द्वेष त्याग का संबोधन व शीतल स्थान में ले जाने की याचना । व्यन्तरी द्वारा मोर बनकर व ऊपर बिठलाकर कपिल धारा पर ले जाना । वहीं मुनि का स्वर्गवास । उधर भगिनी का भ्राता के लिये शोक व स्नान-भोजन त्याग। राजा का पश्चात्ताप व रानी को प्रसन्न करने का प्रयत्न । बहुरूपिये द्वारा भ्राता का वेष धारण कर रानी को सांत्वना । उसी दिन से भाउबीज (भाईदूज) की मान्यता। परीषह सहन पर अभयघोष मुनि कथा । चतुद्वारपुरी काकन्दी । अभयघोष राजा। क्रीड़ार्थ गमन । चारों पैरों से लटकते हुए कच्छप को लिये धीवर का दर्शन । चक्र द्वारा कच्छप के चारों पैरों का कर्तन । कच्छप का राजकुमार चंडवेग के रूप में पुनर्जन्म । चन्द्रग्रहण देखकर राजा की मुनिदीक्षा । विहार कर उसी नगर में आगमन । संस्कार-बश पुत्र द्वारा मुनि के हाथ-पैरों का छेदन । वेदना सहन कर मुनि का मोक्ष । १६. ४६१ ४६१ ४६१ २२. ४६२ पृष्ठ संधि-४९ कडवक १. वंशमशक परीषह पर विद्युच्चर मुनि कथा । मिथिलापुर पद्मरथ के वंश में राजा वामरथ । रानी बंधुमती, यमदंड तलवर । विद्युच्चर चोर । दिन में कोढ़ी के रूप में। राजभवन से हार की चोरी। ४६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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