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________________ ४८५ ४८५ ४८६ ४. राजादेश से पुनः अष्टाह्निक पूजा का उत्सव । धात्री का पुनः अष्टाह्निक उपवास । पारणा के दिन हिमवन्त पद्मद्रह निवासिनी श्रीदेवी का आकर धात्री की पूजा व पंचाश्चर्य। धात्री का निदान पूर्वक मरण व श्रीदेवी रूप में जन्म । लोगों को स्वप्न में दर्शन । ४८४ ५. उद्यान में प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने से सब इच्छाओं की पूर्ति का वरदान । श्रीदेवी के मंदिर की स्थापना व प्रतिमा की प्रतिष्ठा । सिद्धि दात्री की ख्याति । इलारानी की पुत्रोत्पत्ति की याचना । देवी द्वारा पूर्वविदेह गमन । ४८४ ६. स्वयंभू तीर्थकर से प्रश्न-इलादेवी के पुत्र होगा या नहीं ? उत्तर-होगा। श्री देवी द्वारा इलादेवी को स्वप्न में पुत्रोत्पति की सूचना । गर्भ । पुत्रोत्पति व श्रीदत्त नामकरण । नगर व माता तथा पृथिवी के नाम से इलावर्धन भी कहलाया। ७. साकेत नरेश की पुत्री अंशुमती से विवाह । वधु के साथ एक विद्वान् शुक का आगमन । द्यूत कीड़ा में शुक द्वारा रानी का पक्षपात-रानी के जीतने पर दो और राजा के जीतने पर एक रेखा का अंकन । राजा का कोप व प्रहार । राजा पर क्रोध सहित शुक की मृत्यु । वनदेवता के रूप में पुनर्जन्म । ८. मेघ विलय देखकर श्रीदत्त राजा का वैराग्य व मुनि-दीक्षा । एक विहारी होकर उसी नगर में प्रागमन । रात्रि में प्रतिमा योग । व्यन्तर का प्रचंड पवन द्वारा उपसर्ग । मुनि की निश्चलता । कैवल्य व मोक्ष प्राप्ति । ९. उष्ण परीषह सहन पर वृषभसेन मुनि कथा। उज्जैनी के राजा प्रद्योत का गज पकड़ने हेतु वनगमन । सवारी के हाथी का उन्मत्त हो राजा को लेकर पलायन । वृक्ष पकड़कर राजा का उद्धार व ग्राम में प्रवेश । कूप तट में वास । जिनदत्ता पनिहारी से पानी की याचना । ४८६ १०. पानी पिलाकर घर जाकर पिता को सूचना । पिता का जाकर राजा को घर लाना व प्रातिथ्य सत्कार । सेना का राजा की खोज में प्रागमन । राजा द्वारा जिनदत्ता की याचना । विवाह । महादेवी पद प्राप्ति । ११. राजा का हाथी पकड़ने बहिर्गमन । जिनदत्ता की वियोग-पीड़ा । अन्य रानियों द्वारा द्वेषपूर्वक भर्त्सना। ४८७ १२. क्रुद्ध होकर जिनदत्ता का एकान्तवास । राजा का आगमन । जिनदत्ता के कोप व ब्रह्मचर्य व्रत की सूचना से राजा का खेद व उसका श्मशान में परित्याग । पुत्रोत्पत्ति । राजा का स्वप्न में दहाड़ते हुए श्वेत वृषभ का दर्शन व मंत्री से प्रश्न । ४८७ स्वप्न का फल-पुत्रोत्पत्ति । अन्य रानियों का पुत्र-जनन अस्वीकार । जिनदत्ता की सम्भावना व गवेषणा । पुत्रोत्पत्ति जानकर मां-बेटे का आनयन । उत्सव । वृषभसेन नामकरण । उल्कापात से राजा का वैराग्य व अष्टवर्षीय पुत्र के अभिषेक की इच्छा। ४८८ १४. मनुष्यों पर राज्य करने की पुत्र की अनिच्छा व स्वर्ग-मोक्ष राज्य की इच्छा । पिता सहित दीक्षा । एक विहारी होकर कौशाम्बी आगमन । दयावर्त गिरि पर ४८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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