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________________ ( १०० ) २१. गणधरादि मुनियों का प्रागमन । सुभद्रा की प्रार्थना कि वे मौन रहें । क्षमापना क्रिया में जोर से पाठ। सुनकर सुकुमाल का पूर्वभव स्मरण व मुनिव्रत की याचना। आयु प्रमाण तीन दिन । स्वयंबुद्ध होकर तपग्रहण । श्मशान में में ध्यानस्थ । पूर्वभव के संस्कारवश भल्लुकी द्वारा भक्षण । अच्युत स्वर्ग गमन । माता का पुत्रपत्नियों सहित रुदन, अग्निसंस्कार, आर्यिकाव्रत ग्रहण । सुकुमाल के मृत्युस्थल की आज भी कापालिकों द्वारा रक्षा । वहाँ अग्निसंस्कार से उत्तमगति की मान्यता । वहाँ महाकाल की स्थापना । भार्याों के कलकल होने से कलकलेश्वर तीर्थ की ख्याति । आकाश से जहाँ गंधोदक बरसा था, उसी का नाम अब भी गंधवत श्मशान । ४५८ कडवक Y૬૦ संधि-४६ पृष्ठ । १. परीषह सहन पर सुकोशल मुनि की कथा । भरत क्षेत्र, साकेत पुरी, प्रजापाल राजा, सुप्रभा रानी, बत्तीस कोटि का धनी सेठ सिद्धार्थ, बत्तीस पत्नियां। प्रधान पत्नी जयवती। सभी पुत्रहीन । राजा के सिर में श्वेतकेश । जयवती द्वारा मुट्ठी में लेकर कथन-तुम्हारा दूत पा गया। २. राजा का कौतुक । महादेवी द्वारा स्पष्टीकरण-राजदूत नहीं, धर्मदूत । श्वेत केश तथा आकाश में विद्याधर युगल देखकर राजा का वैराग्य । मतिवर मित्र की प्रेरणा से पुत्रोत्पत्ति तक पुनः गृहनिवास । ४६० ३. लौकिक धर्म त्याग कर सत्य धर्म धारण का मुनि द्वारा उपदेश । स्वर्ग से पुत्र पुत्र के गर्भ में प्रागमन का कथन । पुत्र जन्म । किन्तु पिता के गृह-त्याग के भय से उत्सव का निषेध । ४६१ - ४. सेविका द्वारा सोमशर्मा को सूचना और उसकी सेठ को बधाई। सेठ का दान, पुत्रमुख दर्शन, धनदेव नामकरण, सबको आनंद दायक होने से सुकौशल उपाधि । सेठ की प्रव्रज्या । ४६१ ५. शेष पत्नियां भी पार्यिकायें हुई। जयवती का पति पर रोष । पुत्र पालनार्थ पांच धात्रियों की नियुक्ति । बत्तीस कन्याओं से विवाह । मुनि दर्शन से वैराग्य की भविष्यवाणी । साधु के गृहप्रवेश का निषेध । ४६२ ६. गवाक्ष से नगर की शोभा देखते हुए मुनि का दर्शन । माता से प्रश्न । उत्तर कोई दरिद्री भिखमंगा। ७. सुकौशल की मुनि के लक्षणों को देखते हुए उसके भिखमंगा होने की अप्रतीति । धात्री का सत्य संकेत । माता द्वारा निवारण व उसके दीन-दरिद्री होने की पुष्टि । ४६२ ८. माता द्वारा अपने वचन की पुष्टि में पुराणों के उदाहरण तथा नगर के भिक्षार्थियों का परिचय । ४६३ ६. सुकौशल का फिर भी अविश्वास और चिन्तन । सूपकार का भोजनार्थ आमंत्रण व स्नान पूजन की प्रार्थना । ४६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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