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________________ ४६५ ( १०१ ) १०. माता और पत्नियों की भी स्नान, पूजन और भोजन हेतु प्रेरणा। सुकौशल को आगन्तुक का सच्चा परिचय पाने का प्राग्रह । धात्री द्वारा पिता होने का कथन । ४६४ ११. पिता का पूर्ण परिचय । सुकौशल की उन्हीं सदृश मुनि होकर आहार-ग्रहण की प्रतिज्ञा व निर्गमन, मुनि दर्शन और पूर्वभव-स्मरण । पूर्वभव-मलय पर्वत पर गजपत्नी पद्मावती और मलया । रुष्ट होकर मलया का भृगुपात से मरण व चम्पापुर में श्रीदत्त सेठ की पुत्री सुकेशी के रूप में पुनर्जन्म । उस नगर में पद्मावती जितरंग वणिक् का पुत्र वरांग हुप्रा । गंधमादन नृप द्वारा सुकेशी का दर्शन व आसक्ति । सुकेशी का मंदिर से लौट कर पिता को शेष अर्पण ।। ४६४ १३. माता पिता का सुकेशी का विवाह धनबंधु के पुत्र धनमित्र से करने का विचार । राजा का स्वयं प्राकर सुकेशी से विवाह । वनहस्ती को पकड़वाने का उपाय। १४. हाथी को देखकर व मलय हाथी का स्मरण कर सुकेशी का पूर्वजन्म स्मरण, मूर्छा, पूर्वजन्म चित्रण, हाथी के पकड़े जाने पर राजा की बधाई की उपेक्षा, मलय को पकड़ने का संकेत । राजा का उसे पकड़ने का प्रयास, किन्तु असफलता। ४६५ १५. मलय हाथी का मारा जाना व रानी को मोती और दाँत अर्पण । देखकर रानी का मरण व माता पिता का वैराग्य । कैवल्यप्राप्ति । पुनः नगरागमन, सुकेशी के भवान्तर कथन । कांचीपुर, गांधार नृप, सुदर्शन सेठ, प्रियदर्शन पुत्र, नदी सेठ की पुत्री कीर्ति से विवाह । १६. सुन्दर हाथी का दर्शन । उसी प्रकार जन्म पाने का निदान । मरकर हाथी का जन्म । कीर्ति मरकर मलया हस्तिनी हुई व मलय हाथी की दक्षिण देह भागिनी। पद्मावती वाम-देह-भागिनी। १७. एक दिन पद्मावती को पहले कुवलय देने मात्र से अपमानित होकर मलया का अपने को पर्वत से गिराकर आत्मघात व सुकेशी के रूप में पुनर्जन्म । हाथी देखकर पूर्वभव स्मरण । ४६७ १८. शेष वृत्तान्त । मलयसुन्दर हाथी को पकड़कर बुलवाने की इच्छा आदि। ४६७ १६. राजा का बनावटी उत्तर । राजा का हाथी को जीता पकड़वाना अशक्य, अतएव घात व सुकेशी का शोक व मृत्यु । २०. सुकेशी के पुनर्जन्म के सम्बन्ध में राजा का प्रश्न । मुनि का उत्तर-सोरठ देश, गिरिनगर, अतिबल राजा की पुत्री मनोहरी के रूप में । वहीं विजय पुरोहित के पुत्र कुबेरकांत के रूप में चम्पानरेश का जन्म, तथा धनवंत वणिक् के पुत्र श्रीधर के रूप में पद्मावती का । दोनों में मैत्री। श्रीधर का मुख-मालिन्य देखकर कुबेरकान्त का प्रश्न । ४६८ श्रीधर का उत्तर-तुम्हारी प्रिया का मणिकंबल देखकर मेरी प्रिया ईर्ष्यावश प्रासाद से गिरकर मरी । अपनी मित्राणी की मृत्यु के शोक से कुबेरकान्ता का भी मरण । कुबेरकान्त का जाति-स्मरण । निर्गमन । ऊर्जयन्त पर्वत पर विद्याधर से विक्रिया विद्या की प्राप्ति । ४६६ ४६६ ४६८ २१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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