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________________ ४५४ ४५४ ४५५ (RL ) १२. चोरी के अपराध में हाथ पैर काट डालने का राजादेश । सुनकर नागश्री द्वारा प्रचौर्य व्रत की प्रशंसा । पिता द्वारा उस व्रत को भी रखकर शेष त्यागने का प्राग्रह । तीसरे बद्ध पुरुष का वृत्तान्त । मामा द्वारा कन्या का वाग्दान । वर का वाणिज्यार्य गमन व बारह वर्ष तक न लौटने पर अन्य वर से विवाह की अनुमति । १३. वाग्दान की अवधि-समाप्ति व पूर्व वर के लघुभ्राता को वाग्दान । पूर्व वर का प्रागमन । दोनों वरों द्वारा पाणिग्रहण अस्वीकार । उसी कन्या पर बद्ध पुरुष की प्रासक्ति व न्याय में तप्त लौह प्रतिमा के प्रालिंगन का दण्ड । सुनकर नागश्री द्वारा परस्त्री त्याग व्रत की प्रशंसा व पिता द्वारा उसे छोड़ शेष व्रत-त्याग का आग्रह । पुनः बद्ध पुरुष का दर्शन, जिसने राजा के वरदान का दुरुपयोग कर बहुत गायों का संहार किया था और उस अपराध में जिसे शूली का दण्ड मिला था। नागश्री द्वारा पांचों व्रतों की सार्थकता सिद्ध की जाना । पिता ने भी वेदपुराणों से उनका समर्थन किया। १५. तथापि पुरोहित ने मुनि के पास जाकर उसे आगे ऐसा करने से रोकना उचित समझा । मुनि को दूर से पुरोहित का उपालम्भ । मुनि का उस कन्या को अपनी पुत्री कहना व नागश्री का उसके समीप जा बैठना । पुरोहित का रोष । राजा से पुत्रीहरण की शिकायत । १६. राजा का आगमन । मुनि द्वारा अपनी पुत्री को वेद-वेदांग पढाने का दावा तथा पूर्वभव वृत्तान्त । राजा तथा पुरोहित की प्रव्रज्या। १७. अग्निमित्र और सूर्यमित्र का मोक्षगमन । नागशर्मा आदि का स्वर्गवास तथा पुनर्जन्म । नागशर्मा का जीव उज्जयिनी के सेठ इन्द्रदत्त का पुत्र सुरेन्द्रदत्त । नागशर्मा की पत्नी सुभद्र सेठ की पुत्री सुभद्रा । सुरेन्द्रदत्त से विवाह तथा नागश्री का उनके पुत्र रूप में जन्म । सुरेन्द्रदत्त और सुभद्रा के पुत्र का नाम अवन्ति सुकुमाल । यौवन । बत्तीस कन्याओं से विवाह । बत्तीस प्रासाद निर्माण । पिता की प्रव्रज्या । पुत्र के सम्बन्ध में साधुदर्शन होने पर प्रवज्या-ग्रहण की भविष्यवाणी । माता द्वारा पुत्र का घर से बाहर जाना तथा मुनि का गृह-प्रवेश निषिद्ध । कमल से वासित तंदुलों का आहार । दक्षिणापथ से रत्नकंबलों के व्यापारियों का आगमन । बहुमूल्य होने से राजा का भी उनके क्रय का असामर्थ्य । सुभद्रा सेठानी द्वारा खरीदकर बहुओं के के पाहने बनवाना । सुनकर राजा का प्राश्चर्य व प्रागमन । सुकुमाल सहित वापी में स्नान एवं मणिखचित सुवर्ण के हार व अंगूठियों की प्राप्ति । २०. अन्य भी प्राभूषणों की वापी में प्राप्ति । राजा का प्राश्चर्य । भोजन के समय सुकुमाल के नेत्रों से अश्रु तथा थूक । माता द्वारा स्पष्टीकरण-कुमार को रत्नोद्योत तथा कमलवासित प्रोदन का अभ्यास । सुकुमालस्वामी की उपाधि देकर राजा का गृहगमन । ४५५ ४५६ १८. सरेन्ड ५४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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