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________________ ( ६८ ) संधि ४५ कडवक पृष्ठ ४४६ ४५० ४५१ १. परीषह विजय पर शीलसेन्द्र की कथा- दक्षिण देश, कल्पपुर, शीलसेन्द्र राजा श्रावक । श्रीपंचमी का उपवास। . २. शत्रु का ससैन्य आक्रमण । कल्पपुराधीश के भाल में बाण प्रवेश । उस अवस्था में भी युद्ध कर शत्रु का पराजय । पुर-प्रवेश, बाण का निराकरण । मूर्छा । सचेत होने पर पौष्टिक आहार की प्रेरणा । उपवास के कारण निषेध । भूख प्यास परीषह सहकर दूसरे दिन आहार-ग्रहण । ३. परीषह विजय पर अवन्ति सुकुमाल की कथा-कौशाम्बी पुरी, अतिवल राजा, सोमशर्मा पुरोहित, दो दुर्बुद्धि पुत्र अग्निभूति और वायुभूति । पिता की मृत्यु । पौरोहित्य से निष्कासित होकर पुत्रों का राजगृह गमन । सूर्यमित्र मामा द्वारा सम्मान । ४. अहर्निश अध्यापन द्वारा चौदह विद्यायें प्राप्त । पुनः गृहागमन व राजसभा में पैतृक स्थान प्राप्त । सूर्यमित्र की प्रव्रज्या व कौशाम्बी प्रागमन ! अग्निभूति द्वारा पाहार दान । वायुभूति की अश्रद्धा। ५. वायुभूति द्वारा भ्रातृ पत्नी के सिर पर पाद-प्रहार व गृह से निर्वासन । उसका निदान कि अगले जन्म में पैर व शरीर की हड्डियां चबा-चबाकर खाऊंगी। वायुभूति का कुष्ठ व्याधि से मरण । ज्येष्ठ भ्राता द्वारा संबोधन, तथापि लघ भ्राता का दुराग्रह । ज्येष्ठ भ्राता का तप-ग्रहण । उसकी पत्नी द्वारा देवर की भर्त्सना । ७. वायुभूति के खरी, शूकरी, कुक्कुरी, अंधी, कुरूप मातंगी रूप जन्मासर । अग्निभूति के द्वारा दर्शन । सूर्यमित्र द्वारा पूर्वभव कथन । अग्निभूति द्वारा संबोधन । मातंगी को पूर्वभव स्मरण, श्रावक-व्रत ग्रहण व मरकर राजपुरोहित की पुत्री रूप में जन्म । ८. नागश्रीनाम । नागपूजार्थ नागवन गमन । वहां अग्निभूति का दर्शन व सूर्यमित्र द्वारा पूर्वभव कथन । नागश्री व श्रावक-व्रत ग्रहण व सूर्यमित्र द्वारा यह वचन कि यदि पिता व्रत त्याग करावे तो पाकर उन्हें ही अर्पण किये जाय । ६. नागश्री की प्रतिज्ञा । गृह-गमन । पिता द्वारा क्षपणक धर्म त्यागने का आदेश । मुनि को व्रत लौटाने दोनों का उद्यान गमन । मार्ग में एक हत्यारे जुवाड़ी की दुर्दशा व प्राणदंड का दश्य । कुमारी द्वारा अहिंसा व्रत की प्रशंसा । पिता द्वारा उस व्रत को रखकर शेष को त्यागने का आग्रह । महाभारत में व्यास द्वारा जीव दया के उपदेश का प्रमाण । अन्य एक बद्ध पुरुष का दर्शन व परिचय, धान्य के विक्रेताओं का पास के ग्राम में आगमन । ११. राष्ट्रकूट को धान्य की बिक्री । माप करते समय चित्र का दर्शन व एक वणिक् को धोखा देकर धान्यापहरण की कथा । ४५१ ४५१ ४५२ ४५२ मा ४५३ ४५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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