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________________ ४३३ ४३४ ४३४ ४३४ ४३५ ( ५ ) १७. पांचाल का आकर नन्दनवन में वास । शिष्य को सचेतकर वृक्षतले सुप्त । शिष्य की असावधानी व अन्य शिष्यों का पुर दर्शनार्थ गमन । गंधर्वदत्ता का स्वागतार्थ प्रागमन व लार बहाते घुरकते सोता देख विरक्ति । अशोक की पूजा कर व सरस्वती की निन्दा कर गंधर्वदत्ता का गृह गमन । पांचाल का जागरण व शिष्य का जागरण । वृत्तांत जानकर शिष्य पर रोष । पांचाल का राजसभा में गमन । राजा का मनोरंजन । निवास । रात्रि में वीणावाद्य । सुन कर गंधर्वदत्ता की विह्वलता, प्रासाद से पतन व मृत्यु । जिह्वेन्द्रिय के दोष पर भीम नृपति कथा । जंबूद्वीप, भरत क्षेत्र, काम्पिल्यनगर राजा भीम मांसप्रेमी। नन्दीश्वर पर्व में मांस का निषेध । राजा की मांस लोलुपता । सूपकार द्वारा श्मशान से शव लाकर नरमांस का पाक । स्वाद से राजा की प्रसन्नता व सूपकार से पूछताछ । २१. सूपकार का यथार्थ निवेदन । नित्य उसी भोजन का आदेश । सूरकार का बालकों को लड्ड प्रादि द्वारा प्रलोभन व मारकर मांस-पाक । बात खुलने पर प्रजा द्वारा राजा का निस्सारण व रसोइये का पलायन । २२. नेत्रेन्द्रिय दोष पर भद्रमित्र कथा। भद्रिलपुर, धनपति सेठ, भद्रमित्र पुत्र का देवदत्ता से विवाह । मित्र वसन्तसेन व गृहिणी वसन्तमाला। दोनों मित्रों की सपत्नीक उपवन-क्रीड़ा । २३. वसन्ससेन द्वारा पड़े-पड़े ही पाम्र मंजरी गिराकर प्रिया की वही याचना। . धनुर्विद्या न जानने से लज्जा । प्रिया को सोती छोड़ धनुर्विद्या सीखने गमन । २४. मेघपुर के राजा मेघसेन के अध्यापक से धनुर्विद्या शिक्षण । २५. राजा का कन्या मेघमाला का स्वयंवर चंद्रक-वेध द्वारा । भद्रमित्र की सफलता व विवाह । स्वजनों का गृहागमनार्थ आग्रह । श्वसुर द्वारा निरोध । २६. रथ द्वारा कान्ता सहित चुपचाप गमन । सुवेग भिल्ल द्वारा स्त्री हेतु प्रतिरोध । युद्ध । अस्त्रों की समाप्ति । धनुर्बाण लेकर रथ से उतरना । भिल्ल की स्त्रीमुख प्रेक्षण में प्रासक्ति । अवसर पाकर उसकी आंख में बाण-प्रवेश । कुशल पूर्वक गृहगमन । संधि-४४ कडवक १. स्पर्शेन्द्रिय के दोष पर नागदत्ता कथा । दक्षिण देश, नासिक नगर, सागरदत्त गृहपति, गृहिणी नागदत्ता, पुत्र श्रीकुमार, पुत्री श्रीसेना बालविधवा, गोपाल नन्दिमित्र का गृहिणी नागदत्ता से प्रेम व प्रपंच कर स्वामी का वध । पुत्र का शोक । माता द्वारा उसे भी मारने का सुझाव ।। २. पुत्र को गायें चराने भेजने का प्रपंच । भगिनी द्वारा सतर्कता का संकेत । गोपाल का उसे मारने का प्रयत्न । किन्तु सावधानी के कारण उसके द्वारा स्वयं का वध । घर पाने पर माता का प्रश्न । माता द्वारा मुसल प्रहार से घात तथा भगिनी द्वारा माता का घात । ४३६ ४३७ ४३७ पृष्ठ ४३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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