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________________ ४३६ ४३६ ४४० ४४० (६६ ) ३. क्रोधादि कषायों के दोष । क्रोध कषाय पर द्वीपायन मुनि की कथा । सोरठ देश में समुद्र के बीच द्वारावती पुरी। ४. नगर की लम्बाई चौड़ाई, गोपुर खिड़कियां, कुट्टिम व प्राकार की शोभा । दश दशार व पांडवों का वास । वासुदेव नवमें नारायण चक्रेश्वर की विभूति । नेमि तीर्थंकर का आगमन ऊर्जयंत पर्वत पर । सबका वन्दनार्थ गमन । ५. बलदेव का तीर्थंकर से प्रश्न ? केशव की संपदा कितने काल तक रहेगी ? उत्तर बारह वर्ष पश्चात् विनाश । प्रश्न : कारण ? हिरण्यनाभ का पुत्र व रोहणी का भ्राता द्वीपायन शम्बुकुमार द्वारा रुष्ट होकर, मरण कर अग्नि कुमार देव होकर द्वारावती को जला देगा, तथा जरत्कुमार के हाथ से छुरी द्वारा कृष्ण की मृत्यु होगी। मद्यपान से विकल यादवों का परस्पर प्रहार द्वारा मरण होगा । सुनकर सबका विषाद । मद्यभाण्डों का क्षेपण । जरत्कुमार का विंध्य गिरि बास । छुरी को तोड़ फोड़कर समुद्र में विसर्जन । मत्स्य द्वारा छुरी के एक टुकड़े का भक्षण । जरत्कुमार के हाथ पहुँच कर वाणान निर्माण । द्वीपायन का पूर्व देश गमन व बारह वर्ष पश्चात् संघ सहित पुनरागमन, ऊंटगिरि के समीप निवास । वहाँ यादवों का वनक्रीड़ार्थ गमन । ७. यादवों द्वारा मुनि का क्षोभ । शम्बुकुमार द्वारा कंडों से मुनि का सर्वांग आच्छादन । हरि द्वारा क्षमापन । यादवों का फूटे भांड़ों से मद्यपान, परस्पर युद्ध और विनाश । द्वीपायन का मरकर अग्निकुमार जन्म व पुरी प्रज्वालन । बलदेव-वासुदेव का निर्गमन । वृक्षतले वासुदेव की निद्रा व बलदेव का जल की खोज में गमन । जरत्कुमार द्वारा विचित्र पशु जान हरि का बाणवेधन । बलदेव द्वारा छहमास तक हरि के शव का धारण व मुनि के उपदेश से उपशान्ति । दक्षिणदेश के तुंगी पर्वत पर तप कर बलदेव का ब्रह्मलोक गमन । ९. मान कषाय पर सगर पुत्रों की कथा । भारत क्षेत्र, विनीता नगर, सगर राजा साठ हजार पुत्र । पुत्रों का अभिमान । कैलाश के मंदिरों की रक्षार्थ खाई खोदने का पितृ-पादेश । देव द्वारा निवारण । न मानने पर भस्मराशि । सगर का वैराग्य व तप । पुत्रों सहित निर्वाण । १०. माया कषाय पर कुंभकार कथा । चम्पा के समीप वटग्राम, प्रजापति (कुंभकार) अत्यन्त अभिमानी। बैल पर भांड लादकर विक्रयार्थ गमन । भारतग्राम में संध्या। देउल में निवास । महिलाओं द्वारा कल मूल्य चुकाने के बहाने भांड ग्रहण । युवकों द्वारा कुंभकार को नाच गान में फंसाकर बैल का अपहरण । प्रातः मूल्य मांगने पर उल्टी भर्त्सना । १२. कुंभकार द्वारा ग्राम का दहन । लोभ कषाय पर मृगध्वज की कथा। अयोध्या नगरी सीमंधर राजा, मृगध्वज राजपुत्र, ऋषभसेन वणिक् व उसकी बहत सी भैसे। ४४१ ४४१ ४४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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