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________________ ( ६४ ) ७. महत्तरी का संबोधन, रानी का मायाभाव, स्वर्गवास । पश्चात् चम्पापुर के सागरदत्त सेठ की दासी घनदत्ता की पुत्री । सुन्दर किन्तु दुर्गन्धा । वणिक् द्वारा नैमित्तिक से पृच्छा | उत्तर-दुकान के सम्मुख जिस व्यक्ति के ठहरने से तुम्हें एक लाख दम्म का लाभ हो व पुत्री की दुर्गन्ध सुगंध में बदल जाय वही धनमित्रा का पति होगा । वसुदेव के आगमन पर पूर्वोक्त घटनायें व कन्या का उससे विवाह | मिथ्यात्व शल्य के कुफल पर मरीचि कथा । प्रथम द्वीप, पूर्व विदेह, पुष्कलावती देश, मथुरा वन, पुरुख भिल्ल, सागरसेन मुनि का दर्शन व मार्ग प्रदर्शन । मुनि द्वारा मद्य मांस मधु व पंचोदम्बर एवं निशिभोजन त्याग का उपदेश । ८. E. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. श्रावक व्रत पालकर शबर का स्वर्गवास व भरत के पुत्र मरीचि के रूप में जन्म । पितामह (ऋषभ ) के साथ प्रव्रज्या । परीषहों का असहन व व्रत भंग । मिथ्यात्व के कारण नाना दुख, संसार भ्रमण, चार लब्धियां प्राप्त कर सन्मति तीर्थंकर का पद प्राप्त । कुल मर्यादा के रक्षण पर प्रगन्धन सर्प की कथा । उज्जयिनी के राजा सूरसेन । पुत्र सूरवीर की सर्पदंश से मूर्च्छा । वैद्यों को राजादेश । सोमशर्मा वैद्य का गारुड शास्त्रानुसार कुमार का जीवन असम्भव बतलाना । राजा का आग्रह | वैद्य द्वारा मंत्र प्रभाव प्रदर्शनार्थ नागर्याष्ट में समस्त सर्पों का आह्वान | कुमार को काटने वाले को छोड़ अन्य सर्पों का विसर्जन । गारुड़िक का व्याख्यान विषैले सर्पों के दो कुल गंधन और अगंधन । गंधन कुल द्वारा विष का अपहरण गंधन द्वारा कदापि नहीं । इस प्रगंधन को छोड़ देने की सलाह । राजा का विषापहरण का श्राग्रह | गाड़िक का ध्यान कर अगंधन सर्प को विषापहरण अथवा अग्निप्रवेश का आदेश । सर्प द्वारा कुल परम्परा का रक्षण व अग्निप्रवेश । इसी प्रकार मुनि द्वारा इन्द्रिय कषायों का वमन कर पुनः ग्रहण अयोग्य । घ्राणेन्द्रिय के वशीभूत होने के दोष पर गंधमित्र कथा - - कौशलपुर का राजा विजयसेन । राजपुत्र जयमित्र और गंधमित्र । राजा की दीक्षा । जयमित्र की राज्य - प्राप्ति । युवराज गंधमित्र द्वारा राज्यापहरण व ज्येष्ठ भ्राता का निस्सारण । नगर के समीप गिरिवन में जयमित्र का निवास । पुनः राज्यप्राप्ति को चिन्ता व छिद्रान्वेषण हेतु गुप्तचर प्रेषण | गंधमित्र की विषयासक्ति । अन्तःपुर सहित सरयू नदी में जलक्रीड़ा । जलमित्र द्वारा ऊपर प्रवाह से विषमय सुगंधी पुष्पों का विसर्जन, गंधमित्र द्वारा ग्रहण, सूंघना और मरण । कर्णेन्द्रिय की विषयासक्ति पर पांचाल - गंधर्वदत्ता कथा । पाटलिपुत्र की वैश्या गंधर्वदत्ता की गायन कला से जीतनेवाले से विवाह की प्रतिज्ञा । वरों का गमनागमन । पोदनपुर का प्रसिद्ध गवैया पांचाल । Jain Education International For Private & Personal Use Only ४२६ ४२६ ४३० ४३० ४३१ ४३१ ४३२ ४३२ ४३३ www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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