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________________ ४०२ ४०३ ४०४ ( ८६ ) ६. अगले जन्म में फडहस्त महाहस्ती हुआ और उसका गरुड़दत्त पुत्र कंकजंघ नाम का वनचर। कंकजंघ द्वारा दांतों के लिये हाथी का वध । हाथी मरकर कीचक पक्षी हुआ और कंकजंघ द्वारा लगाई दावाग्नि में जलकर सिंहल द्वीप के समीप द्रविड़ देश की बेन्ना नदी के सागर संगम में केंकड़ा हुआ, जो कंकजंघ के जीव मछुए द्वारा मारा गया। अगले जन्म में फडहस्त का जीव भगलिदेश के कसवल ग्राम में करभ नामक कृषक हुआ और गरुड़दत्त का जीव अश्व । दोनों एक दूसरे को मारते पीटते । चारण मुनियों का प्रागमन । ११. करभ द्वारा सागार-व्रत ग्रहण व सोते हुए खल तुरण द्वारा मारे जाकर स्वर्ग प्राप्ति। वहां से च्युत हो चम्पापुर में भवदत्त वणिक् का पुत्र भवदेव । वहीं जिनदत्त के पुत्र जिनदेव के रूप में नागदत्त का जन्म । पूर्व संस्कार बश दोनों को मैत्री। जिनदेव की दीक्षा। १२. उसी से भवदेव का दीक्षा-ग्रहण । विहार करते कलिंग देश में नंदिग्राम के समीप ऐरावती नदी के तट पर तप । नदी के पूर से तट पात व रत्नों से भरे घट का प्रकटन । पुराने लोभ संस्कार वश उसे आसन के नीचे गड़ाकर योग । वनदेवी द्वारा प्रलोभन व उपदेश । - १३. पूर्वभव स्मारण । प्रात्मनिन्दा । गुरुसमीप आलोचना । अचलपुर में सुभद्र सेठ के पुत्र भद्रबाहु का लोक सम्मान देखकर निदान पूर्वक स्वर्गवास । उज्जयिनी के सेठ सबंधु की भार्या धनश्री के गर्भ में अवतरण । धननाश । पिता की मृत्यु । १४. धनश्री का शिप्रा तट पर रुदन । मेदार्य पल्ली के महत्तर पर्वत द्वारा वृत्तान्त जानकर व बहिन मानकर गृह-प्रानयन । पुत्र जन्म । मेदार्य नाम । वहीं धनश्री के भ्राता भवश्रीसेन की पुत्री तिलकासुन्दरी के रूप में फडहस्त की पत्नी नागवसु का जन्म । पढ़ाने के निमित्त पाठक को समर्पण । मेदार्य और तिलकासुन्दरी का साथ साथ विद्यार्जन । परस्पर स्नेह । एक दिन भवश्रीसेन ने दोनों को साथ झूले पर झूलते देखा और लात मारकर मेदार्य को उतार दिया । म्लेच्छों से विटाला हुआ तू पुत्री को क्यों छूता है ? कहकर निकाल दिया। सुनकर माता का शोक । १६. माता द्वारा अपने कटु अनुभवों का वर्णन व प्रतिमा योग्य सुवर्ण पाने की असंभवता । मेदार्य का वन में जाकर प्रात्म-घात का प्रयत्न । ऋषिवेष में अच्युतेन्द्र का पाकर व वृत्तान्त सुनकर बारह वर्ष पश्चात् तप करने की शर्त पर सुवर्ण प्रतिमा देने का वचन व मेदार्य की स्वीकृति । १७. घर जाकर देवी की पूजा करने पर सुवर्ण प्रतिमा प्राप्ति की विधि का कथन । तदनुसार प्रतिमा प्राप्ति व कन्या की मांग । कन्या के पिता द्वारा प्रांगन में क्षीरोदधि लाने की दूसरी शर्त । माता द्वारा पुनः निवारण। १८. मेदार्य का आग्रह व श्मशान जाकर पुनः मरण का प्रयत्न । सुरपति का पुन ४०५ ४०५ १५. ४०६ ४०६ ४०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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